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भारतीय समाज में मानवीय मूल्यों पर हावी बढती महत्वाकांक्षा और लालच





*सुषमा व्यास 'राजनिधि'*


प्राचीन काल से भारतीय समाज में पारिवारिक  और मानवीय मूल्यों को अधिक महत्व दिया जाता रहा है। भारतीय परिवार हमेशा अपनी उच्च  संस्कृति  और  परम्परा के लिये सारे विश्व में आदर की दृष्टि से देखा जाता   रहा है।प्राचीन गृहस्थ परम्परा का मर्यादित पालन सम्पूर्ण परिवार चाहे वो किसी भी जाति, धर्म या राज्य से हो सदियों से करता चला आ रहा है।आज भी हमारे समाज में बहुविवाह को मान्यता नहीं है, विवाहेतर सम्बन्धों और स्वतंत्र शारिरीक सम्बन्धों को निम्नस्तर की श्रेणी का माना जाता है और इसे स्वीकारने वालों का समाज में  कोई आदर और सम्मान नहीं रह जाता है।एकल विवाह, मर्यादित व्यवहार, बहन बेटियों का आदर साथ ही बेटी की उम्र की अन्य स्त्री के साथ भी बेहद पवित्र भाव हमारे भारतीय समाज की विशेषता है।आज भी हमारे समाज में  शिवाजी, विवेकानन्द,  का उदाहरण दिया जाता है। महारानी लक्ष्मीबाई और रानी पद्मावती की वीरता और साहस की कहानियां गूंजती है।स्वामी विवेकानन्द ने तो विदेश में भी भाईयों और बहनों कहकर नारी जाति का सम्मान किया।शिवाजी के सैनिक युद्ध में जीतकर आये तो मुगल शहजादियों की ड़ोली भी उठा लाये।


शिवाजी ने तब उन्हे देखकर कहा-- "आप हमारी मां समान है। आपको देखकर ये विचार मन में आ रहा है कि अगर आप हमारी मां होती तो मैं भी आप जैसा ही खुबसूरत होता।"


शिवाजी नेउन्हे ससम्मान मुगल ड़ेरे में वापस भेजा ।रानी पद्मावती ने अपनी और अन्य राजपूतानियों की लाज बचाने की खातिर जौहर कर लेना सही समझा।


गुजरते वक्त के साथ मान्यताएं और मूल्य भी बदलते चले गये। इक्कीसवीं सदी जहां नारी मुक्ति और स्वातंत्रय की हवा लेकर आयी वहीं कुछ बुराईयों और दोषों को भी अपने साथ ले आयी।


बढती आर्थिक व्यवस्था, विलासित जीवन और वैभवपूर्ण माहौल कुछ लोगों को आकर्षित करने लगा और परिणाम हुआ सामाजिक व्यवस्था में ऊंचे सामाजिक मूल्य और पारावारिक मर्यादा का ह्रास समाज ऐसे समाचारों से विस्मित और दुखी होने लगा जो रिश्तों और विचारों   को तार तार करने लगे।हनी ट्रंप और उससे भी पहले हुऐ अनेक मामले इसका उदाहरण है। उच्च पदस्थ अधिकारी और मंत्रियों का उसमें शामिल होना तथा काॅलेज की कम उम्र कन्याओं के बारे में सुनकर , पढकर हर आम भारतीय स्तब्ध है।


क्या समाज  इतने नीचे गिर गया है, क्या इतना पतन हो चुका है कि एक बार भी ये मन में या सोचने में नहीं आता कि इंसान होते हुऐ  अपनी बहन बेटियों की उम्र की लड़कियों के साथ क्या घिनौना  रच रहे है। जानवर की प्रवृत्ति अपना रहे हैं।क्या कुछ नारी  आजादी के नाम पर मां बाप की आंखों में धूल झोंककर बिना सोचे समझे सिर्फ विलासिता के लालच में इस गर्त में गिर रही हैं। शादाशुदा होते हुऐ महिलायें चंद रूपयों की खातिर शातिर अपराधी बन रही है।इस छलावे से बाहर जब उनकी आंखें खुलती है तो सिर्फ पछतावे के कुछ हासिल नहीं होता, पूरा जीवन बर्बाद हो चुका होता है।यह बहुत ही गंभीर और सोचनीय विषय है समाज के लिये कि अगर ऐसे घटनाक्रम हो रहे हैं तो समाज के सुसंस्कार, सुविचार, मर्यादित पारावारिक मूल्यों का क्या होगा?देश की उन्नति और अवनति इन सब पर भी तो निर्भर है।एक कन्या जो देशसेवा करने सेना में जाना चाहती थी जेल की सलाखों के पीछे अपराधी बनकर खड़ी है।सपनों को पूरा करने के लिये शाॅर्टकट अपनाना गलत दिशा की ओर मोड़ देता है।प्रत्येक भारतीय को और समाज के प्रत्येक स्त्री पुरूष का समाज के प्रति दायित्व बनता है कि इस पर विचार करे, सोचे, भावी पीढी को इस बुरे अच्छे से अवगत कराये।


देश के भावी हो या वर्तमान कर्णधार , खासकर देश की प्रशासनिक और राजनैतिक बागड़ोर जिनके हाथों में है वो मंत्री और अधिकारी,  उनमें विचारों की पवित्रता, मर्यादित जीवन और मन की शुद्धता होनी बहुत आवश्यक है वरना आने वाली पीढी में अपराध और भ्रष्टाचार का बोलबाला होगा और देश अपने मूल्य खो देगा।भारत की भारतीयता को बचाना हमारा प्रथम उद्देश्य होना ही चाहिये।  ईश्वर और कानून दोनों ड़र होना ही चाहिये।तभी देश उन्नति कर सकेगा। सिर्फ आर्थिक रूप से ही नहीं सामाजिक रूप से भी।


*सुषमा व्यास 'राजनिधिइंदौर,मो8959689009 





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