Subscribe Us

बेवजह बहने दो (कविता)






*मीना अरोड़ा*


हर बार जरूरी नहीं


वजह का होना


कभी कभी 


अच्छा लगता है


मोतियों को बिना


धागों के संजोना


क्योंकि


धागे जब कभी


 उलझते हैं तो


सुलझते नहीं


बना गांठों के गट्ठर


न लगाओ कोई


गठबंधन


इन धागों को 


स्वछंद रहने दो


मैं तुम्हारे मन की


तुम मेरे मन की


एक दूजे को कहने दो


इस रिश्ते में


नाम का होना


जरूरी नहीं


नहीं है वजह कोई


 तो वजह को रहने दो


बेवजह बरसने दो


ताप को बूंदें सहने दो


मत बोलो कुछ भी


जुबां से


खामोशियों को 


सब कुछ कहने दो


आज बह रही है


पगली पवन


बेवजह बहने दो।।


*मीना अरोड़ा, उत्तराखंड







शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-


अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com


या whatsapp करे 09406649733



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ