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अफवाए (कविता)






*संजय वर्मा 'दॄष्टि'*
अफवाह भी उडती/उड़ाई जाती है
जैसे जुगनुओं ने मिलकर
जंगल मे आग लगाई
तो कोई उठ रहे कोहरे को
आगसे उठा धुंआ बता रहा
तरुणा लिए शाखों पर उग रहे
आमों के बोरों के बीच
छुप कर बैठी कोयल
जैसे पुकार कर कह रही हो
बुझालों उडती अफवाओं की आग
मेरी मिठास सी कुहू -कुहू पर ना जाओं
ध्यान दो उडती अफवाओं पर
सच तो ये है की अफवाओं से
उम्मीदों के दीये नहीं जला करते
बल्कि उम्मीदों पर पानी फिर जाता 
उठतीअफवाहों से
अब ख्व्वाबों मे भी नहीं डरेगी दुनिया
इसलिए ख्व्वाब कभी अफवाह नहीं बनते
और यदि ऐसा होता तो अफवाए
मंदिर.मस्जिद ,गुरूद्वारे ,गिरजाघर से
अपनी जिन्दगी की भीख
भला क्यों मांगती ?


*संजय वर्मा 'दॄष्टि'125,शहीद भगत सिंग मार्ग,मनावर (धार) मो.9893070756 







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