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अनुभूतियों के गजरे














सबदों की धूप ओढ़े,



मन के सहन में उतरे,



कुछ अक्षरों के साये.



*



वर्णों के पैदलों में,



हैं दर्द के मृत्युंजय,



भावों के भव्य बंधन,



स्वरग्राम के धनंजय,



लय घुँघरुओं को बाँधे,



वाणी के मंजु पाये.



*



नम बादलों के आँसू,



अँखियों की भैरवी हैं,



बिजली की धड़कनों की,



पीरों की कैरवी हैं,



ध्वनि-वाटिका में उड़-उड़,



भँवरा ठुमरियाँ गाये.



*



सुधियों के मधुवनों के,



प्रतीकत्वों के प्रबंधन,



कथनों के वाक्य अभिनव,



शैली के हर समंजन,



अभिप्राय की झोंपड़ियों



की, छान को हैं छाये.



*



भाषा की आंतरिकता,



है व्यंजना की व्याख्या,



बिंबों के नव वसंतों,



संवेदना की आख्या,



अनुभूतियों के गजरे,



अवगाहनों के लाये.



*



*शिवानन्द सिंह 'सहयोगी',मेरठ






 













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