*मीना अरोड़ा*
कुछ लोगों के पास
आत्म कथा नहीं,
दर्द की एक झील सी
यादों की चट्टानों में
कैद रहती है
उन चट्टानों को सरकाने से
बह निकलेगा दर्द
और फिर चारों ओर
होगा एक सैलाब
जिसमें फिर से
उतर कर उन्हें
गोते लगाने होंगे
जरुरी नहीं कि हर बार
वे अच्छे तैराक साबित हों
समय के साथ झील में
गहरे भंवर भी बनते हैं
हर बार तैरने की कला
उन्हें किनारे पर ले आए
यह भी जरुरी नहीं
वे डूब भी सकते हैं
तो फिर क्यों न
उन बीते पलों को
अलविदा कह कर
हम अपना कदम
वर्तमान में रहने दें
अपनी आत्मकथा की
बंद झील को
चट्टानों के नीचे
बहने दें।।
*मीना अरोड़ा, उत्तराखण्ड
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