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यह दुनिया एक समंदर है(गीत)


*तारकेश्वरी 'सुधि'*

 

यह दुनिया एक समंदर है ,

हम पार करें इसको कैसे ।

 

कुछ सपने ऐसे भी होते ,

अँधियारों में छिपकर रोते।

रूठे जो निंदिया आँखों से ,

आशा के पत्ते शाखों से ।

जब छोर नहीं उम्मीदों का,

तब समझाएँ मन को कैसे ।

यह दुनिया.................

 

दुख देना जिनकी चाहत है,

 छल में मिल जाती राहत है ।

जो सम्मुख खुश कर जाते हैं,

पीछे सबको भरमाते हैं

ऐसी संगत ऐसी बातें ,

स्वीकार भला हमको कैसे ।

यह दुनिया ....................

 

एक दरिया उर में रहता है ,

चुपके से खुद में बहता है।

ज्यादा जब आहत हो जाता ,

तब सीमाओं से टकराता।

वो तोड़े बाँध बने नदियाँ,

मंजूर भला दिल को कैसे।

यह दुनिया..............।.

 

*तारकेश्वरी 'सुधि',जयपुर

 

 

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