*माया मालवेन्द्र बदेका*
जिंदगी बख्शी जिसने, उसका एहसान अता कर।
रब देता है छप्पर फाड़, करता नहीं वो जता कर।
नसीब तो जो लिखे उसने सबके कर्मो की मानिंद।
सजा दे या रिहाई उसका फैसला,तू बात पता कर ।
मयस्सर न होती किसी को कभी ,आसमां सी बुलंदी।
गम दिये होंगे किसी को तूने,अब न ऐसी खता कर।
जन्नत से जहन्नुम तक का, सफर बड़ा ही पेचिदा है।
दिलजमई की गुंजाइश ही नहीं किसी को सता कर।
बड़ी बेरूखी बे-अदबी से ,रुसवा कर देते हैं दर से।
बेहिसाब बनाये है इंसान, रब ने अलग सी कता कर।
पाने के लिये सितारों से आगे, और भी बहुत है माया।
छोड़ दे सारे गुमान लालच ,बस साथ अपनी मता कर।
*माया मालवेन्द्र बदेका,74 अलखधाम नगर,उज्जैन मध्यप्रदेश
शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-
0 टिप्पणियाँ