दीप शिखा सी रौशन
दया सिंधु सी
अधरों पर मौन
स्वयं की पीर छुपाकर
अपनत्व के उपवन में
ममत्व के फूल खिलाकर
शूलों से सदा बचाती
अधैर्य क्षणों में
आँचल ओढ़ा
गोदी झूली
लोरी सुन थपकी पाई
बुरी नज़र से बच जाऊँ
काला टीका माथे पे
स्वयं सजल वसन पर रात बिताई
मैं सूखे बिछौने पर सोई
साँस-साँस है ऋणी तुम्हारी
मेरे जीवन पे है
उपकार तुम्हारा माँ।
*डॉ.प्रीति प्रवीण खरे,कोटरासुल्तानाबाद,भोपाल म.प्र,पिन-462003,मो.-9425014719
0 टिप्पणियाँ