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सोंचना तो होगा ही (कविता)










*यशवंत कुमार सिंह*

 

भगत सिंह के 

आक्रोश में

उनके गुस्से में

आजाद भारत के

सपनों की आग थी

देश के निर्माण 

का राग भी. 

तभी तो 

गीत गाते हुए

चढ गए थे सूली पर

 

अंग्रेज क्रूर थे

निर्मम थे

बेरहमी से

मारे गये थे 

भगत सिंह

पर वे छू भी 

नहीं पाये थे

उनके सपनों को

उनकी आग को

उनके राग को

 

जो उनकी

एक मात्र पूंजी थी

जिसे वो देना चाहते थे

इस देश को

जिसके लिए मरना भी

उनके लिए

जीने से बडा काम था.

 

आज सभी अपने हैं

उनके मन में भी

वही सपने हैं

 

पर क्यों लगता है

न उनके सपने रहे

न बंची है वह आग

दम तोड रहे हैं

उनके राग.

 

प्रहार जारी है

सोचना तो होगा ही.

 

*यशवंत कुमार सिंह,बलिया/कोलकाता,मो 9506093068









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