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समय की गुल्लक में(कविता)


-श्रीमती भारती शर्मा

 

मत सोचो कितनी साँसें हैं, ऐ यार समय की गुल्लक में

जितना चाहो उतना भर लो, प्यार समय की गुल्लक मेें

 

कल था तेरा, अब है मेरा, कल ये उसका हो जायेगा

ऐसे ही चलता रहता, व्यापार समय की गुल्लक में

 

सारी खुशियाँ, सारे उत्सव, कुछ यादें और कुछ-कुछ सपने

सिमट गया है सारा ही, संसार समय की गुल्लक में

 

अब आओगे, अब आओगे, रस्ता तकती हैं ये अखियाँ

बचा रखे हैं कितने ही, इतवार समय की गुल्लक में

 

जाने मत देना व्यर्थ अरे तुम, इस अनमोल ख़ज़ाने को

सबको गिनती के मिलते, दिन चार समय की गुल्लक में 

 

हर पल चलता रुकता न कभी है ऐसा खेल खिलाड़ी का

तन-मन दोनों को देता, आकार समय की गुल्लक में

 

-श्रीमती भारती शर्मा


स्ट्रीट-2, चन्द्रविहार काॅलोनी(नगला  डालचन्द) क्वारसी बायपास, अलीगढ़-202001 (उ.प्र.)

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