-विजय सिंह चौहान
कल शाम, समृद्धी रोते-रोते अपनी दादी से लिपट गई। अश्रुधारा के पीछे , वजह थी... सहेली से होने वाली अपेक्षा और उन अपेक्षाओं पर उसका खरा न उतरना।
सुबकते हुए , समृद्धि ने दादी से कहा... मैं हमेशा, किरण के काम आती हूं उसके दु:ख - दर्द में सहभागी बनती हूं, तो फिर वह मेरे समय में अक्सर जी क्यों चुरा जाती है..?
समृद्धि की पलकों पर जमे आंसुओं को पोछते हुए दादी जी ने समझाया....लाडो, हमें बस अपना कर्म करना चाहिए । हमारे सद्गुणों की महक चारों ओर बिखरनी चाहिए, बिना इस बात की फिक्र किए की वह तुम्हारे काम आएगी या नहीं ! उसका कर्म उसके साथ है और तुम्हारा कर्म तुम्हारे साथ है।
हमे अपेक्षाओं को त्याग कर अपने सद्गुण, अपने कर्म नहीं छोड़ना चाहिए....दादी की बात सुनकर समृृद्धि के मन में काले बादलों के बीच आशा की किरण फूट पड़ी।
-विजय सिंह चौहान
9691555365
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