*राज बाला 'राज'*
आया है जब से ख़त ये हमारे जनाब का
दिल में खिला हुआ है चमन सा गुलाब का।
उस हस्ने-बेपनाह का अंदाज़ देखकर
उड़ने लगा है रंग रुख-ऐ-माहताब का।
आहट जो आ रही है उसी मेहरबाँ की है
इल्हाम उसको हो गया क्या मेरे ख़्वाब का।
कहता है मुझसे गाँव का हर शख़्स अब यही
मिलता नहीं जवाब तुम्हारे जवाब का।
उसकी निगाहे-इश्क में नश्शा है इस कदर
सबको ही हो रहा है जो धोखा शराब का।
इस दर्जा पा रहीं हूँ मैं उसकी इनायतें
हर पल सुधर गया है दिल-ऐ-खाना खराब का।
मैं कर रही हूँ आज ये दावा सहेलियों
लाये कोई जवाब मिरे इंतख़्वाब का।
ऐ *राज* चढ़ रहा है नशा हमको इसलिए
वो प्यार दे रहा है हमें बेहिसाब का।
*राज बाला " राज" ,राजपुरा हिसार (हरियाणा)
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