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मैं नारी हूँ(कविता)


*मीना अरोड़ा*


तुम अक्सर रूठ जाते हो
मेरे तर्कों से
और मैं जीत कर भी
हार मान लेती हूं
तुम और मैं
दोनों सही गलत 
हो सकते हैं
पर हार जाना
मेरी नियति में लिखा है
प्रकृति ने स्त्री को
नरम और लचीला
बनाया है
इसीलिए शायद बिना
अकड़न और ऐंठन 
की मेरी काया है
मुझमें झुकने की क्षमता
तुमसे कहीं अधिक है
पर किसी को अपनाकर
बीच राह में
छोड़ जाने का 
साहस नहीं
शायद इसी के चलते
मेरे हिस्से में
राम और बुद्ध जैसा 
इतिहास नहीं
मेरे हक में
सिर्फ
सीता और यशोधरा 
जैसा त्याग झेलने का
 गुणगान लिखा  है
मैं नारी हूं
मेरे हिस्से में पूरा नहीं
आधा ही सम्मान लिखा है
नाम मेरा भी आता है
जब कोई गीत तुम्हारे गाता है
तुम खारे सागर प्रेम के
बन इतराते हो
मैं मीठी शांत नदी सी
तुममें आ समाती हूं।।



*मीना अरोड़ा,हल्द्वानी,उत्तराखण्ड


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