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कर्तव्य की डोर हमारे हाथों में होती है (लेख)


*बलजीत  सिंह*
किसी गाड़ी को स्टार्ट करने के लिए ,उसमें चाबी लगानी पड़ती है । अगर हम उस चाबी को विपरीत दिशा में घुमाएं तो वह स्टार्ट नहीं होगी , क्योंकि हमने चाबी को गलत दिशा में घुमाया है । इसी प्रकार जब व्यक्ति सोच -समझकर गलत दिशा की ओर कदम उठाता है , समझो वह अपने कर्तव्य से भटक चुका है ।

प्रत्येक मनुष्य की ,परिवार ,समाज एवं देश के प्रति कुछ जिम्मेदारियां होती है , उन जिम्मेदारियों को निष्ठा के साथ निभाना ,कर्तव्य कहलाता है । जो व्यक्ति कर्तव्य का पालन करता है ,वही जीवन में आगे बढ़ता है ।

एक अंधा व्यक्ति सड़क पार करने के लिए जब आवाज देता है , हमारा कर्तव्य बनता है , हम उसका हाथ पकड़कर सड़क पार करवाएं ‌। ऐसा करना हमारा कर्तव्य है ,परंतु यहां हमारे ऊपर किसी प्रकार की पाबंदी नहीं है । किसी की सहायता इस तरह से करना कि उसके मान -सम्मान एवं मर्यादा को ठेस न पहुंचे  ।भूखे व्यक्ति को अगर रोटी न दें सके , तो उसका अपमान भी मत करो , क्योंकि ऐसा करना हमारा कर्तव्य नहीं बनता ।

फूलों में खुशबू होती है ,कोई इन्हें चुरा नहीं सकता या अलग नहीं कर सकता । इसी प्रकार कर्तव्य भी हमारे पास सुरक्षित होते हैं , कोई इन्हें हमसे छीन नहीं सकता । कर्तव्य की डोर हमारे हाथों में होती है । हम चाहे तो इसे ढीली छोड़ सकते हैं और चाहे तो इसे कस भी सकते हैं ।

देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर जवान दिन-रात पहरा देते हैं ।उनको आपातकालीन स्थिति में गोली चलाने का अधिकार है , परंतु अधिकार के साथ-साथ कर्तव्य की भी जरूरत होती है । युद्ध के समय , कोई भी सैनिक बीमारी का बहाना बनाकर , छुट्टी का अधिकार तो प्राप्त कर लेगा , परंतु ऐसा करना उसका कर्तव्य नहीं बनता । उसका यह कर्तव्य बनता है , वह देश की रक्षा के लिए अपना सहयोग दें अर्थात  कर्तव्य के बिना अधिकार अधूरा है ।

बेटी के जवान होते ही ,उसका पिता उसके लिए वर ढूंढना शुरू कर देता है । एक ऐसा वर जो सुन्दर ,सुशील  एवं सर्वगुण संपन्न हो ,जो उसकी बेटी को जीवन भर खुशियां दे सके । कुछ ऐसा ही सोचकर ,वह अपनी बेटी के पीले हाथ करने के लिए ,रात को चैन की नींद नहीं सोता और आखिर वह दिन भी आता है , जब वह अपनी लाडली को अपने घर से विदा करके  , एक पिता का फर्ज पूरा करता है ।

कुत्ता जिस घर में रहता है ,वह उसी घर की रखवाली करता है । अगर घर में मालिक न हो , वह किसी अनजान व्यक्ति को वहां घुसने नहीं देगा । उस जानवर को कोई हक नहीं मिला होता , वह किसी को घर में आने दे या न आने दे । परंतु वह अपना कर्तव्य पूरी वफादारी के साथ निभाता है । वह जब भी भौंकता है , अपने मालिक के दुश्मनों पर भौंकता है । एक जानवर होकर भी वह अपने फर्ज के प्रति सचेत रहता है ।

किसान बड़ी मेहनत से अपने खेत में फसल उगाता है और समय-समय पर उसमें खाद एवं पानी भी देता है । इसी तरह एक अध्यापक भी छात्रों को समय के अनुसार पढ़ाता है ,लिखाता है और उनको जीवन में हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा के साथ-साथ उज्ज्वल भविष्य की कामना भी करता है । इसलिए कर्तव्य का दायरा बहुत बड़ा होता है । यह केवल रिश्ते- नातों तक ही सीमित नहीं होता । किसी रोगी को अगर रक्त की आवश्यकता होती है , हम अपना रक्त देकर  ,इंसानियत का फर्ज अदा कर सकते हैं । ऐसा करने से हमें उसके मायूस चेहरे पर ,फिर से मुसकुराहट देखने को मिल सकती है ।

नदी के किनारे , सड़क के किनारे , खेत में , विद्यालय में , अगर कहीं पर थोड़ी- बहुत खाली जगह नजर आये , हम वहां पर फलदार वृक्ष लगा सकते हैं । ऐसा करने से हमारा पर्यावरण भी शुद्ध होगा और प्रकृति के प्रति हमारा जो कर्तव्य बनता है ,उसे निभाने में हम सफल भी अवश्य होंगे ।

*बलजीत  सिंह ,ग्राम / पोस्ट - राजपुरा  ( सिसाय ),जिला - हिसार - 125049  ( हरियाणा) मो०09896184520


 


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