म.प्र. साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा नारदमुनि पुरस्कार से अलंकृत

दृष्टि (लघुकथा) 


 

*डॉ. गिरीश पंडया*

 

किसी अस्पताल के एक वार्ड में दो रोगी भर्ती थे। दोनों ही रोगियों की जांच  के परिणामों में यह पाया गया कि उनकी एक किडनी खराब है। एक रोगी को जब यह बताया गया तो वह ऐसा सोचकर खुश हुआ कि कम से कम उसकी एक किडनी तो सुरक्षित है। आगे की जिंदगी उस एक किडनी के सहारे ही कट जाएगी।   

         दूसरे रोगी को जब  एक किडनी खराब होने की बात  पता चली तो  वह भयंकर तनाव में आ गया । उसने सोचा कि उसकी एक किडनी तो खराब हो ही चुकी है और अब यदि दूसरी भी खराब हो गई तो उसका बचना तो मुश्किल ही है समझो।

     कुछ दिनों बाद पहला रोगी पूर्णत: स्वस्थ होकर घर जा चुका था। दूसरा रोगी अधिक समय तक जीवित नहीं रहा । रिपोर्ट के अनुसार उसकी मृत्यु किडनी खराब होने से नहीं बल्कि अनावश्यक तनाव के चलते ब्रेन हेमरेज से हुई।

    परिस्थितियां दोनों रोगियों के लिए ही समान थी किंतु दोनों रोगियों द्वारा उन परिस्थितियों को देखने की दृष्टि अलग थी जो उन्हें अलग दिशा में ले गई।

 

*डॉ. गिरीश पंडया,A-22 , ऋषिनगर,उज्जैन (म. प्र.) ,मो 09926018122


 

 


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