*सुनील कुमार वर्मा ,'मुसाफ़िर'*
आये तेरे दीदार को दीदार न मिला,
टूटे हुये दिल को मेरे दिलदार न मिला।
मुझको बहुत गुरुर था अहबाब पे मेरे,
लेकिन मेरे मेयार का मुझे यार न मिला।
गुजरी है मेरी ज़िंदगी साकी के पहलू में,
लेकिन मुझे कतरा ए ख़ुमार न मिला।
बागे वफ़ा के वास्ते गुजरी है जिंदगी,
लेकिन मेरी वफ़ा का तरफदार न मिला।
आंखों का नूर बह गया उसकी तलाश में,
लेकिन मेरे नसीब का करतार न मिला।
कैसे कटी है रात "मुसाफ़िर" से पूछिये,
दिन के सफर में कोई मुझे यार न मिला।
*सुनील कुमार वर्मा ,"मुसाफ़िर "इंदौर, मो.9826492940
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