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अहसास(कविता)


*राजेश 'राज़'*



किसी अंजाने 
अहसास की तरह
मन को छू जाती हो 
ज्यो 
महक रही हो बगीया 
रजनी गंधा 
की खुश्बू सी 
मन आंगन मे 
बिखर जाती हो
अटूट रिश्तो के
भंवर मे 
समझ ना पाया 
तुमको मे
एक ड़ोर बांधकर 
मन से मेरे 
अपने मन तक 
ले जाती हो
प्रथम मिलन की 
दुल्हन सी 
शरमाती 
इठलाती 
मुस्काती
तारो के संग 
बारात लिये
चांदनी सी 
ख्वाब मे 
आ जाती हो 
मूक भाषा 
बनकर हो आती 
शब्दो के तार 
बुनती जाती 
ह्रदय पटल पर 
मेरे लिख कविता 
जिने का 
अहसास 
जगा जाती हो ।



*राजेश " राज़ ", उज्जैन


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