Subscribe Us

आग है ईर्ष्या (लेख)



*बलजीत  सिंह*


बिजली की नंगी तार को जब हाथ लग जाता है , वह करंट मारती है ; क्योंकि उसके अंदर ऊर्जा होती है । वह ऊर्जा जहां से निकलकर आई है , उस स्थान के तापमान का हम अंदाजा नहीं लगा सकते कि वहां पर कितनी आग है । इसी प्रकार जब कोई हमारी भावनाओं के साथ छेड़छाड़ करता है , हमारे हृदय से भी ऐसी ही आग निकलती है और हृदय की इस आग को ईर्ष्या के नाम से जाना जाता है ।

दूसरों की उन्नति , खुशी एवं व्यवहार से , जब हमारे अंदर जलन पैदा होती है , उसे ईर्ष्या कहते हैं । यह सभी मनुष्य में एक समान नहीं होती । जहां तक हो सके , इसे हृदय से निकाल देना चाहिए ।

कागज और लकड़ी जब दोनों में आग लगती है , कागज की आग जल्दी से बुझ जाती है और लकड़ी की आग ज्यादा देर तक जलती है । इसका कारण यह है कि लकड़ी एक ठोस वस्तु है , जबकि कागज एक हल्की वस्तु । इसी प्रकार ईर्ष्या भी उस लकड़ी वाली अग्नि के समान  है , अगर एक बार यह उत्पन्न हो गई , फिर मन को शांति नहीं मिलती। यह व्यक्ति के स्वभाव को ऐसे बदलती है ,जैसे पतझड़ का मौसम , वृक्षों के पत्तों का रंग बदलता है ।

किसी भी वस्तु पर प्रत्येक पदार्थ का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है । हम एक गिलास के अंदर पानी और दूसरे गिलास के अंदर मिट्टी का तेल डालकर , जब इन दोनों को खाली करते हैं ,पानी वाला गिलास साफ हो जाएगा , परंतु मिट्टी के तेल वाले गिलास के अंदर से बदबू आती रहेगी । इसी प्रकार जब मन में ईर्ष्या उत्पन्न होती है , वह मन को अपने रंग में रंग लेती है । उसकी गन्ध हमारे मन में तेल वाले गिलास की तरह समा जाती है ।

बाजार में अनेक व्यक्ति पैदल चलते हैं । कोई हमारे से आगे निकल जाता है तो कोई पीछे रह जाता है । आगे निकलने वाले व्यक्तियों के कदमों की गति तेज होती है और पीछे रहने वाले की गति धीमी होती है । वहां पर सभी व्यक्ति एक साथ , एक दिशा में नहीं चलते । वे केवल अपने स्वभाव के अनुसार चलते हैं । इसी प्रकार ईर्ष्या की झलक भी सभी व्यक्तियों में पाई जाती है । यह स्वभाव के अनुसार किसी ने कम तो किसी में ज्यादा ।

लोहे को काटते के लिए पत्थर के औजार काम नहीं करते । उसे काटने के लिए उससे भी मजबूत औजारों की आवश्यकता पड़ती है । जिस औजार से जब लोहे को काटा जाता है , ऐसी स्थिति में उसके अंदर से चिंगारी उत्पन्न होती है । इसी प्रकार ईर्ष्या भी एक चिंगारी है । यह जब उत्पन्न होती है तो हमारे मानसिक विचारों को नष्ट कर देती है अर्थात इसके प्रभाव से हमारी सोचने की शक्ति कमजोर पड़ जाती है ।

विद्यालय में कार्य के अनुसार , समय-समय पर घंटी बजाई जाती है । उस घंटी के बजने से सभी विद्यार्थी , अपने कार्य के प्रति सचेत हो जाते हैं । कब प्रार्थना होगी ,कब कक्षा लगेगी ,कब छुट्टी होगी , ये सभी कार्य घंटी बजते ही आरंभ हो जाते हैं । इसी प्रकार जब हमारे मन में ईर्ष्या की घंटी बजती है , हमें किसके साथ बोलना है , किस तरह से बोलना है , किसके साथ कैसा व्यवहार करना है आदि ये सभी बातें , हमारे दिमाग में अपने आप उत्पन्न हो जाती है ।

गेहूं की पिसाई करते समय , चक्की से गर्म आटा निकलता है । उस आटे के गर्म होने का यही कारण है , जब गेहूं का दाना चक्की के साथ रगड़ खाता है , वह गर्म होकर टूट जाता है । इसी प्रकार ईर्ष्या भी चक्की के समान है , जो हमारी इंसानियत की भावनाओं को रगड़- रगड़ कर , इन्हें चकनाचूर कर देती है ।

हवा में किए गए प्रहार से किसी दूसरे को नुकसान नहीं होता । अगर कुछ नुकसान होता है तो वह स्वयं प्रहार करने वाले का । इसी प्रकार जिस व्यक्ति के हृदय में ईर्ष्या की भावना होती है , वह उसी को नुकसान पहुंचाती है । उसका प्रभाव दूसरों पर नहीं पड़ता । इसलिए हमें इसके प्रभाव से बचना चाहिए अर्थात ईर्ष्या की भावना को हृदय से निकाल देना चाहिए ।

*बलजीत  सिंह  ,ग्राम / पोस्ट - राजपुरा  ( सिसाय ),जिला - हिसार - 125049  ( हरियाणा )



शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-


अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com


या whatsapp करे 09406649733


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ