भोपाल। साहित्यिक संस्था अन्तरा की मासिक काव्य गोष्ठी साहित्यकार मनीष बादल के कोलार स्थित निवास पर रविवार को सम्पन्न हुई। अपनी अलग पहचान रखने वाली इस संस्था की काव्य गोष्ठी में केवल छन्दयुक्त काव्य सृजन करने वाले साहित्यकार ही सम्मिलित होते हैं। गोष्ठी में भोपाल के कई ख्यातिलब्ध साहित्यकार शामिल हुए। गोष्ठी की शुरुआत करते हुए मनीष बादल ने ग़ज़ल सुनाई, तत्पश्चात कुछ दोहे सुनाये जो बहुत पसन्द किये गए। उनका एक दोहा देखिए, "सच कहने में आजकल, जितनी डरे ज़ुबान। उससे भी ज़्यादा डरे, सच सुनने में कान"।
लक्ष्मीकान्त जावणे ने सुनाया, "मैं सादगी में खर्च होना चाहता, मैं आदमी का मर्म होना चाहता"। वरिष्ठ ग़ज़लकार किशन तिवारी ने ग़ज़ल सुनाई, "मैं तेरा हूँ या तू मेरा सृजक है, कठिन प्रश्न सदियों से लेकिन रोचक है"। वरिष्ठ साहित्यत्कार आचार्य रामवल्लभ आचार्य ने सुनाया, "मैंने कब गीतों को गाया, मेरे गीत मुझे गाते हैं"। एक और वरिष्ठ ग़ज़लकार महेश अग्रवाल ने सुनाया, "दृश्य ये कैसे भयंकर आ गए, अम्न के ही घर में खंज़र आ गए"। दीपक पंडित ने ग़ज़ल सुनाई, तिजोरी रोज़ ख़ाली हो रही है, दलाली पर दलाली हो रही है"। वरिष्ठ गीतकार अशोक निर्मल ने सुनाया, "लोग आँखों में पत्थर लिए घूमते, हर जगह आईना मत दिखाया करो" वरिष्ठ गीतकार ऋषि श्रृंगारी ने गीत सुनाया, कल्पनाओं के गाँव में हम दो घड़ी जो ठहर जाते, मैं तुम्हें अपनी सुनाता तुम मुझे अपनी सुनाते"। प्रसिद्ध व्यंग्यकार राजेंद्र गट्टानी ने सुनाया, "वैभव और प्रबंधन पर निर्भर जब लोकाचार हुए"। कवयित्री मधु शुक्ला ने सुनाया, "गावों की पगडंडियां मुझको बुलाती हैं"।
युवा कवयित्री प्रार्थना पंडित ने ग़ज़ल सुनायी, "इक तेरे इंतज़ार में बैठे हुए हैं हम, उल्फ़त के ऐतबार में बैठे हुए हैं हम"। अभिलाषा अनुभूति ने सुनाया, "है बहुत लम्बी कहानी छोड़िए, क्या पता कितनी पुरानी छोड़िए"। कवयित्री रीतू श्रीवास्तव ने आमंत्रित साहित्यकारों का धन्यवाद ज्ञापन किया एवं अपनी रचना सुनाई, " बेलास, बेइम्तेहाँ, बेपनाह, बेलगाम, चाहिए अगर प्यार, तो बदलनी होगी भौरों वाली प्रवृत्ति"। कार्यक्रम अपनी ऊँचाईयों पर पहुँच कर समाप्त हुआ।



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