लोक भाषाएँ छोटी नदियाँ होती हैं जो मिलकर एक बड़ी नदी बनाती हैं - विनोद मिश्र सुरमणि
लोकभाषाओं में माँ के दूध की मिठास होती है - डाॅ. राम वल्लभ आचार्य
भोपाल। मध्यप्रदेश लेखक संघ द्वारा प्रादेशिक लोकभाषा पद्य/गद्य. गोष्ठी का आयोजन रविवार, 27 जुलाई 2025 को अपराह्न 2 बजे से दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी नगर, भोपाल में संपन्न हुआ।
दतिया से पधारे मुख्य अतिथि विनोद मिश्र सुरमणि ने सुनाया, "ऐसी है बुंदेली माटी मिसरी जैसी घाटी, चंदन घिस कवि बन गए तुलसी अवधी संग में बांटी"। उज्जैन के पधारी सारस्वत आतिथि श्रीमती सीमा देवेंद्र ने सुनाया, "कत्रो अनमोल म्हारो मालवो हो राज, सुन्ना सरीको नाम चमके हो राज"।
विशिष्ट अतिथि डाॅ. राम वल्लभ आचार्य ने अपने उद्बोधन में कहा कि लोकभाषाओं में माँ के दूध की मिठास होती है । इनमें ममत्व और वात्सल्य का प्रभाव परिलक्षित होता है जिनसे मनुष्य अभिव्यक्ति की पहली सीढ़ी चढ़कर दुनिया को अनुभव प्राप्त करता है। रचना पाठ की शुरुआत करते हुए ठीकमगढ़ से आये बुंदेली कवि रामानंद पाठक 'नंद' ने पर्यावरण पर गीत सुनाया, "धरती कौ श्रिन्गार बिला गव, उजर गये सब जंगल। बिला गये सब पशु पखेरु, बिला गये सब दंगल।"
उज्जैन से पधारे मालवी बोली के कवि एस. एस. यादव ने सुनाया, "अरे म्हारा वीरा,अरे म्हारा वीरा। जाने कब छूटी जाए यो सरीरा।" भोपाल की बुंदेली बोली की कवयित्री आशा श्रीवास्तव ने सुनाया, "जिया नहीं लागे अकेली चली आई, आजा मोरे कान्हां पावस ऋतु आई"। मण्डलेश्वर से आयेविष्णु फागना ने निमाड़ी में सुनाया, "आई बरखा राणी छम् सी इठळाती, रई ,रई नऽ वा तो मारऽ, वादलई काली काली, आई बरखा राणी छम् सी इठळाती।
सागर से आये बिंद्रावन राय सरल ने सुनाया, "मेगाई ने ऐसो ठून्सा मारो है, ऑखन में छाओ गेरो इन दयारो है।" ग्वालियर से पधारी आशा पाण्डेय ने सुनाया, किते किते मैं ढूंकत फिर रई, कांह लों न खटकाओ, तुम तो बैठे आन ह्रदय में हमने समझ न पाओ"। रतलाम से पधारे कवि प्रवीण अत्रे ने निमाड़ी में विवाह प्रस्ताव पर आधारित हास्य रचना से बहुत गुदगुदाया, छत्तीस साल को छोरो छे, दूर को एक रिश्तेदार, ओको गोरो छे, भलई झुकेल ओकी वेस्ट छे, पण छोरो योज बेस्ट छै"। दमोह से पधारे डॉ गणेश राय ने सुनाया, "बिधना की गति इतै टारें नईं टरनें, ई माटी के पुतरा कौ का गरब करनें"। दतिया से आये हरिकृष्ण हरि ने बुंदेली में सुनाया, "मिलत नइयां माउवा के लटा, कितै गए मारू वे भटा।"
मध्यप्रदेश लेखक संघ के प्रांतीय मंत्री मनीष बादल ने भोजपुरी बोली में सुनाया, " कहाँ फँसइला मालिक हमके ई कइसन संसार हौ, झोलझाल हौ गड़बड़झाला, सगरों भ्रष्टाचार हौ। " मध्यप्रदेश लेखक संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष ऋषि श्रृंगारी ने सुनाया, "गीतन के गाँव और छंदन की छाँव तले, चलौ आज थोड़ौ सौ विहार कर लीजिए"। संघ के कोषाध्यक्ष सुनील चतुर्वेदी ने अपने पिता और बुंदेली के प्रख्यात कवि बटुक चतुर्वेदी की बुंदेली रचना का पाठ किया "भोत दिनन के बाद गांव में खूब भरो है जमके मेला" ।संघ के अध्यक्ष राजेंद्र गट्टानी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि मध्यप्रदेश में लोक भाषाओं में लिखी जा रही उत्कृष्ट रचनाएँ बताती हैं लोक भाषाओं का भविष्य बहुत उज्जवल है। अन्य रचनाकारों में खरगोन से मोहन परमार, भोपाल से सत्यदेव सोनी, बड़नगर से डॉ रमेश चंद्र चांगेसिया आदि ने रचना पाठ किया। मंच का संचालन मनीष बादल एवं प्रवीण अत्रे ने किया। सुनील चतुर्वेदी ने अंत में धन्यवाद ज्ञापन दिया।
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