भोपाल। श्रुत रत्नाकर (अहमदाबाद), वर्ल्ड जैन कनफेडरेशन (मुंबई) और फेडरेशन ऑफ जैन संगठन (Association) इन नॉर्थ अमेरिका के संयुक्त तत्वाधान में चतुर्थ अंतरराष्ट्रीय जैन सम्मेलन दिनांक 11 एवं 12 जनवरी 2025 को गुजरात विश्वविद्यालय के श्यामा प्रसाद मुखर्जी सभागार अहमदाबाद में संपन्न हुआ। इस कड़ी में वरिष्ठ लेखक चिंतक एवं मोटिवेशनल स्पीकर पदमचंद गांधी ने "परिग्रह का श्रेष्ठ उपयोग है दान" विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए बताया कि अध्यात्म महत्वाकांक्षाओं और लिप्साओं में कटौती करना सीखता है।
अपरिग्रह की प्रवृत्ति को विकसित करता है और संग्रह की मनोवृत्ति को दरकिनार करते हुए, अपनी प्राप्त वस्तु के स्वामित्व का त्याग स्वेच्छा से करते हुए, दूसरों के लिए उपयोगी एवं कल्याण हेतु, हर्ष उल्लास के साथ उदार मन से देता है तो वह कर्म निर्जरा करता है, पुण्य अर्जित करता है तथा कषlय युक्त विचारों से और तनाव से मुक्त होता है। महावीर के दान और अपरिग्रह सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए बताया की खुशी एवं आनंद पदार्थ को प्राप्त करने में नहीं त्यागने में है जो अपने अधिकार को छोड़ता है, ममत्व का त्याग करता है, अनासक्त भाव रखता है आनंद को प्राप्त करता है। सच्चा सुख एवं शांति को प्राप्त करता है। परिग्रह के विसर्जन से आर्थिक समानता को बल मिलता है। राष्ट्र का विकास होता है और गरीबी रेखा से लोग ऊपर उठकर अपना जीवन स्तर उच्च बना सकते हैं।
आज आर्थिक सत्ता का केंद्रीकरण हो रहा हो रहा है अमीर और अधिक अमीर तथा गरीब और गरीब बन रहे हैं। इस विषमता को दूर करने का श्रेष्ठ उपयोग एवं प्रयोग संग्रहित का दान और संपत्ति का विसर्जन करना है। इससे दानदाता को संतुष्टि संतोष एवं आनंद प्राप्त होगा तथा गृहीता की आवश्यकताओं की पूर्ति होगी एवं जीवन उच्चस्तर बन पाएगा तथा आर्थिक विषमता दूर होगी।
इस संगोष्ठी में देश-विदेश के 45 विद्वानों ने अलग-अलग विषयों पर जैन धर्म के महत्व पर प्रकाश डालते हुए अपने विचार विचार प्रस्तुत संयोजक श्री जितेंद्र भाई शाह ने सभी का आभार प्रकट किया।
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