सरल काव्यांजलि की मोबाइल रहित गोष्ठी आयोजित
उज्जैन। 'माइनस डिग्री में भी जय हिन्द! ये गर्म खून के दिन हैं, जांबाज सैनिकों के लिए ये मई जून के दिन हैं।, सरल काव्यांजलि की मासिक गोष्ठी में कवि सन्तोष सुपेकर ने उक्त पंक्तियाँ पढी तो सर्द माहौल गर्मा गया। जानकारी देते हुए संस्था सचिव मानसिंह 'शरद' ने बताया कि यह एक अनूठी गोष्ठी थी जिसमें मोबाइल फोन का उपयोग सभी के लिए वर्जित था।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. शिव चौरसिया ने संगोष्ठी और गोष्ठी का अन्तर बताते हुए सरल काव्यांजलि के मोबाइल फोन रहित आयोजन की सराहना की। उन्होंने अपनी मालवी रचना 'होंठ फटे, सी-सी करे, मुण्डों निकले भाप, स्यालो जकड़े भील के, ठंड बाप रे बाप' का पाठ भी कियावि शेष अतिथि डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि परिवर्तन की आहट आज की रचनाओं में स्पंदित हो रही है और इस कार्यक्रम में बहुत ही समर्थ, सार्थक रचनाएं पढी गईं। विशेष अतिथि डॉ. हरिमोहन बुधोलिया ने कहा कि रचना धर्म से सुकून मिलता है। कुम्भ मेले के साधु-संतों की तरह सारे साहित्यकार बिना आमंत्रण के आ जाते हैं। कार्यक्रम के अध्यक्ष, ख्यात कवि सुगनचंद्र जैन ने अपने उद्बोधन के बाद ' घर की आन - बान और शान बेटियाँ, माता-पिता की होती हैं जान बेटियाँ' पढी।
डॉ. पुष्पा चौरसिया ने 'नव वर्ष अभिनंदन तेरा' डॉक्टर नेत्रा रावणकर ने 'बंद कर दो अब संवादों में स्थायित्व ढूँढ़ना' आशीष श्रीवास्तव 'अश्क ' ने 'बीता है य़ह साल भी आगंतुक के तौर, साँसें कितनी शेष हैं करें इस पर गौर', हाकम पांचाल ने 'ममतामयी माँ, ममता बरसाओ' , युवा कवि हर्ष सैनी ने 'बादल छा जाएं ,हवाएं काम नहीं करती,बुरे कर्म मत करना, दुआएं काम नहीं करती 'नंद किशोर पांचाल ने 'सभ्यता, संस्कृति, संस्कारों को हवन नहीं होने देंगे', वी.एस. गहलोत 'साकित उज्जैनी' ने 'जिंदगी है सफर कीजिए, हँसते रोते बसर कीजिए' धनसिंह चौहान ने 'ठंड ठंड करते ठण्ड को कहते राजा,' डी. के. जैन ने 'दुविधा के चौराहे पर जन्म दिवस एक विकल्प है' ,अशोक रक्ताले ने 'आई जबसे सर्दियाँ भीग रही है रात' ,गिरजादेवी ठाकुर ने 'मैं जितने साल जी ली उससे कम अब मुझे जीना है' रचनाएं सुनाई। आशागंगा शिरढ़ोणकर ने 'पराया धन', रामचंद्र धर्मदासानी ने 'आत्मा की पुकार' और गोपालकृष्ण निगम ने 'रोशनी के गमले' शीर्षक की लघुकथाएं पढ़ी। माया बदेका ने मालवी रचना सुनाई। वर्षा गर्ग (मुंबई) की भेजी हुई कविता 'खिड़कियाँ' पढी गई।
संस्था की परम्परानुसार श्रीकृष्ण "सरल' जी की कविता 'क्यों जवां खून में आता इंकलाब नहीं?' का वाचन डॉ. संजय नागर ने किया। इस माह के जन्म दिवस वाले सदस्यों आशीष श्रीवास्तव, वी. एस. गहलोत और मुक्तेश मनावत का विशेष स्वागत हुआ। प्रारम्भ में सरस्वती वंदना सुगनचंद्र जैन ने प्रस्तुत की।अतिथि स्वागत प्रदीप 'सरल', अनिल कुमार चौबे, हंसराज गायकवाड़ ने किया। संचालन राजेंद्र देवधरे 'दर्पण' ने किया और आभार श्रीमती सुमन नागर ने व्यक्त किया।
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