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भारतीय संस्कृति ने हमेशा से हर धर्म के सत्य को अपनाया - प्रो. सत्यकाम जोशी


उज्जैन।हर धर्म का उद्देश्य मानवता की सेवा और सत्य की खोज है। गांधी जी का यह विश्वास था कि सत्य एक नहीं, बल्कि उसके अनेक रूप हो सकते हैं। हर धर्म अपने सत्य और मार्गदर्शन के माध्यम से मानव जीवन को सुधारने का प्रयास करता है। गांधी जी का कहना था कि यदि कोई केवल अपने सत्य को ही श्रेष्ठ माने और दूसरों के सत्य को अस्वीकार करे, तो यही असहमति समाज में हिंसा और कट्टरता का कारण बनती है।

भारतीय संस्कृति ने हमेशा से हर धर्म के सत्य को अपनाया और उसका आदर किया है। यह संस्कृति सहिष्णुता, प्रेम, और समन्वय की भूमि है। यहां सदियों से विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ रहते आए हैं। यही विविधता भारतीय संस्कृति की शक्ति है।

उक्त विचार सामाजिक अध्ययन केंद्र, वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय, सूरत के निदेशक प्रो. सत्यकाम जोशी ने भारतीय ज्ञानपीठ (माधव नगर) में कर्मयोगी स्व. कृष्ण मंगल सिंह कुलश्रेष्ठ की प्रेरणा एवं पद्मभूषण डॉ. शिवमंगल 'सुमन' की स्मृति में आयोजित 22 वीं अ.भा.सद्भावना व्याख्यानमाला के दिृतीय दिवस पर प्रमुख वक्ता के रूप में व्यक्त किए ।"महात्मा गांधी और सर्वधर्म समभाव" विषय पर व्यक्त अपने विचारों में प्रो. जोशी जी ने कहा कि गांधी जी ने अपने जीवन में हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध, जैन, ईसाई, सिख धर्मों और अन्य धर्मों के सिद्धांतों को समझा और आत्मसात किया। उनका पालन-पोषण वैष्णव परंपराओं में हुआ, लेकिन उनके विचार किसी एक धर्म तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने महसूस किया कि हर धर्म के सिद्धांत प्रेम, सेवा, और सत्य की ओर ले जाते हैं। उनके बचपन में ही उनके पिता के बीमार होने पर विभिन्न धर्मों के उपदेशों को सुनने का अवसर मिला, जिसने उनमें सर्वधर्म समभाव की भावना को और मजबूत किया। गांधीजी के जय जगत का सूत्र वाक्य अपने आप में सर्वधर्म समभाव का ही एक वैश्विक रूप था।

प्रो. सत्यकाम जोशी ने बताया कि गांधी जी का मानना था कि धर्म का अध्ययन केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसका उद्देश्य मानवीय मूल्यों को समझना और जीवन में उतारना होना चाहिए। सत्य की यह समझ हमें यह सिखाती है कि विरोध किसी धर्म से नहीं, बल्कि अधर्म से होना चाहिए। कबीर ने भी अपने दोहों में कहा है कि हमें हर धर्म के सार को स्वीकार करना चाहिए और जो असत्य है, उसे छोड़ देना चाहिए। गांधी जी ने इस विचार को अपने जीवन में अपनाया और इसे समाज में भी स्थापित करने का प्रयास किया।

प्रो. जोशी ने कहा कि आज के समय में, जब समाज में बंटवारे की प्रवृत्ति बढ़ रही है, गांधी जी का यह संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है। हर धर्म का सत्य हमें प्रेम और करुणा की ओर ले जाता है। अगर हम प्रत्येक सत्य का आदर करें और उसे समझने का प्रयास करें, तो समाज में समरसता और शांति को बनाए रखना संभव होगा। इसलिए, यह जरूरी है कि हम धर्मों के बीच विभाजन को मिटाकर, हर धर्म के सत्य को स्वीकार करें और मानवता की सेवा में उसका उपयोग करें।


समारोह की अध्यक्षता करते हुए संस्कृतविद, संस्कृत महाविद्यालय, उज्जैन के आचार्य माननीय डॉ. सदानंद त्रिपाठी, ने कहा कि पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के प्राणियों का अस्तित्व यह दर्शाता है कि ईश्वर ने ही स्वयं हमें विविधता प्रदान की है। यह विविधता ईश्वर का उपहार है, और इसका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। ईश्वर की दी हुई इस विविधता का सम्मान तभी संभव है जब हम सभी को समान दृष्टि से देखें। न कोई ऊंचा हो, न कोई नीचा; न किसी प्राणी के प्रति भेदभाव हो, और न ही मनुष्यों के धर्म, जाति या संप्रदाय के आधार पर भेदभाव किया जाए। महात्मा गांधी ने समान दृष्टि का यह महान सूत्र हमें दिया। वे सदैव अपने पास भागवत गीता रखते थे, जो कि एक अद्वितीय और सार्वभौमिक ग्रंथ है। गीता वेदों के ज्ञान का सार है और हर मनुष्य, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो, के जीवन को दिशा देने वाले सूत्र प्रस्तुत करती है। संत-महात्माओं ने भी यही उपदेश दिया है कि हमें भेदभाव और अहंकार से बचते हुए समभाव का आचरण करना चाहिए। महात्मा गांधी ने कहा है कि यदि हम अपने अहंकार का त्याग कर सकें, तो ही समग्र भाव को आत्मसात कर सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने क्षमा के महत्व को समझाया है, और गांधीजी ने इसे अपने जीवन में प्रमुखता से अपनाया।

प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय संस्कृति हमें सिखाती है कि जीवन में प्रिय और अप्रिय, सभी प्रकार के लोग मिलते हैं। हमें सभी का आदर और सम्मान करते हुए जीवन जीना चाहिए। यही समभाव और समान दृष्टि का आदर्श है। व्याख्यानमाला के आरंभ में संस्थान की शिक्षिकाओं द्वारा सद्भावना गीतों की प्रस्तुति दी गई। वरिष्ठ शिक्षाविद श्री दिवाकर नातु, संस्थान प्रमुख श्री युधिष्ठिर कुलश्रेष्ठ , श्रीमती अमृता कुलश्रेष्ठ सहित संस्थान के पदाधिकारियों द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, कविकुलगुरु डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन और कर्मयोगी स्व. श्री कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ के प्रति सूतांजलि अर्पित कर दीप प्रज्वलित किया गया। भारतीय ज्ञानपीठ के सद्भावना सभागृह में डिजिटल व्याख्यानमाला को सुनने के लिए वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी श्री प्रेम नारायण नागर, दूरदर्शन के पूर्व जॉइंट डायरेक्टर श्री विनोद नागर, श्री क्रांति कुमार वैद्य, डॉ पिलकेंद्र अरोरा, डॉ. रामसेवक सोनी, डॉ. एस. के जोशी, श्री डी.के.जैन, श्री मोहन नागर ,श्री अक्षय अमेरिया, श्री चंद्र मोहन श्रीवास्तव, श्री अजय मेहता, डॉ सुनीता श्रीवास्तव सहित विभिन्न पत्रकारगण, शिक्षकजन एवं बौद्धिकजन उपस्थित थे। व्याख्यानमाला का संचालन श्रीमती आरती तिवारी ने किया।

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