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डॉ मक्खन मुरादाबादी के गीत-संग्रह ‘गीतों के भी घर होते हैं' का लोकार्पण


मुरादाबाद। शहरों से जो मिली चिट्ठियां, गांव-गांव के नाम। पढ़ने में बस आंसू आये, अक्षर मिटे तमाम। जैसे संवेदनशील गीतों के रचनाकार डॉ मक्खन मुरादाबादी के गीत-संग्रह ‘गीतों के भी घर होते हैं' का लोकार्पण आज साहित्यिक संस्था - 'सवेरा' एवं 'अक्षरा' के तत्वावधान में काँठ रोड मुरादाबाद स्थित मिगलानी सेलीब्रेशंस के सभागार में किया गया। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्त ने की, मुख्य अतिथि के रूप में विख्यात शायर मंसूर उस्मानी तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया। प्रत्यक्ष देव त्यागी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम में लोकार्पित कृति- ‘गीतों के भी घर होते हैं' से मक्खन मुरादाबादी जी के गीत का पाठ करते हुए वरिष्ठ कवयित्री डा. प्रेमवती उपाध्याय ने सुनाया- गीत वंदना करते-करते, अभिनव बोल रहा है। नव स्वर नव लय ताल छंद नव, सबको तोल रहा है। वरिष्ठ कवयित्री डा. पूनम बंसल ने मक्खन जी का गीत सुनाया अर्थहीन हो चुका बहुत सा, उसको मानी दो। प्यासे झील नदी नद पोखर सबको पानी दो। कवि राजीव प्रखर ने मक्खन जी का गीत सुनाया- कुछ ऐसा भी जग में, इसके गहरे अर्थ निकलते। वसुधा होना क्या समझें जो फसलें रोज निगलते। कवि मयंक शर्मा ने भी मक्खन जी का गीत सुनाया- बाहर से जो कभी न दिखते, पर सबके भीतर होते हैं। मानो या मत मानो लेकिन, गीतों के भी घर होते हैं।

इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उमाकांत गुप्त ने कहा- डा. मक्खन मुरादाबादी के गीत संभावना से सार्थकता तक की यात्रा के साक्षी हैं, उनकी रचनाधर्मिता लोक मंगल के लिए समर्पित है। संग्रह के गीत देशज अनुभूतियों की गहरी अभिव्यक्ति हैं। मुख्य अतिथि के रूप में विख्यात शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि मक्खन जी को हास्य व्यंग्य कवि के रूप में दुनिया जानती है लेकिन उन्होंने गीत रचकर एक तरह से चौंकाने का काम किया।उनके गीत यह साबित करते हैं कि उनके भीतर शुरू से ही गीत कहीं नहीं पनपते रहे हैं। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर ने कहा कि सहज और सरल भाषा में लिखे गये मक्खन जी के गीत मन को छूते हैं। 

विशिष्ट अतिथि शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा कि चूँकि मक्खन जी व्यंग्य कवि हैं, इसलिए उनके गीतों में भी सशक्त व्यंग्य के दर्शन होते हैं। उनके यहाँ आम आदमी की दौड़-धूप, उसकी समस्याएँ और उन समस्याओं का निदान आसानी से देखा जा सकता है। नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने इस अवसर पर अपने आलेख का वाचन किया- मक्खन जी के गीतों से गुज़रते हुए साफ-साफ महसूस किया जा सकता है कि उनकी यह अभिनव गीत-यात्रा लोकरंजन से लेकर लोकमंगल तक की वैचारिक पगडंडियों से होती हुई निरंतर आगे बढ़ी है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि डॉ मक्खन मुरादाबादी के गीतों में जहां समाज की पीड़ा का स्वर मुखरित हुआ है वहीं राजनीतिक विद्रूपताओं को भी उजागर किया गया है। अपने गीतों के माध्यम से वह पाठकों को सामाजिक सरोकारों से जोड़ते हैं तो राष्ट्र के प्रति कर्तव्य का बोध भी कराते हैं। शायर ज़िया जमीर ने कहा ये गीत ज़िंदगी और समाज की कड़वी सच्चाइयों को सिर्फ दिखा नहीं रहे बल्कि ज़िंदगी की आंख में आंख डालकर उससे सवाल कर रहे हैं, यकीनन इस गीत संग्रह ने डॉ मक्खन मुरादाबादी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक तमग़ा और लगा दिया है।

लोकार्पित गीत-संग्रह पर आयोजित चर्चा में कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा- आपके गीत पढ़ना जीवन को एक नई दृष्टि देता है। हृदय के उच्च भावों को अपने समृद्ध शब्दकोश से चयनित श्रेष्ठ शब्दों की पोशाक पहनाना, शब्दों की मितव्ययिता के साथ ही उन्हें उनके सटीक स्थान पर रखना,जैसी लेखन टिप्स को उन्होंने सोदाहरण अपने गीतों के माध्यम से लेखकों की नव पीढ़ी को समझा दिया है। महाराजा हरिश्चन्द्र डिग्री कालेज के प्रबंधक डॉ काव्य सौरभ जैमिनि ने कहा कि मक्खन जी ने अपने गीतों के माध्यम से सरलता व कोमलता के साथ यथार्थ को समाविष्ट कर एक अभिनव पहल की है। उनके गीतों में विषय की विविधता एवं संवेदनाओं का विस्तार है। बौ‌द्धिक चेतना से ओतप्रोत इन गीतों में वैचारिक गांभीर्य है। कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि वीरेंद्र सिंह बृजवासी, शिव मिगलानी, आर.के.जैन, हेमा तिवारी भट्ट, समीर तिवारी, सुशील शर्मा, के.के.गुप्ता, फक्कड़ मुरादाबादी, दुष्यंत बाबा, अशोक विश्नोई, मीनाक्षी ठाकुर, मनोज मनु, प्रत्यक्ष त्यागी, खुशी त्यागी, नकुल त्यागी, रघुराज सिंह निश्चल, अक्षरा तिवारी आदि उपस्थित रहे। आभार अभिव्यक्ति अक्षिमा त्यागी ने प्रस्तुत की।

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