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कुदाली को हत्थे पर होगा अफसोस एक दिन -डॉ सुरेन्द्र मीणा


आज नहीं तो कल फिर गुल यूं खिलेंगे
दरख़्तों की कोख में सांस लेते नवजात पलेंगे

कुदाली को हत्थे पर होगा अफसोस एक दिन
करतूत पर खुद की फिर आंसुओं के झरने बहेंगे

निराशाओं के बादल आज है कल न भी हो
तेज धूप की बारिश में फिर कड़वे घूंट पियेंगे

वक़्त रहते अफसोस से पहले सोच जरा
फिर तो ज़ख्मों से दर्द के कई कई दरिया बहेंगे

आज खुशियाँ मना ले,घी के दीपक जला ले
देखना पूनम की रात में आसमां तन्हा रहेंगे

अब भी खुद को इस गहरी खाई से निकाल ले
यूं फिर समझाइश के सच्चे सिपहसालार न मिलेंगे

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