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ऑलराउंडर कवि साहित्यकार -गड़बड़ नागर जी



जहॉ गड़बड़ मचा करती, उसे घरबार कहते है।
जो फोकट में मिला करता, उसे हम माल कहते है।
चाय सा जरूरी है- सुनों जी हास्य जीवन में
जहॉ भोंदू भी पूजे जाये, उसे ससुराल कहते है।

इन पंक्तियों के लेखक उज्जैन शहर में पिछले छह दशक से साहित्यिक गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में अपनी उपस्थिती से अलग पहचान वाले पं. अभिमन्यु त्रिवेदी 'गड़बड़ नागर' 1 फरवरी 2024 को अल्पकालीन बीमारी के चलते अनंत की यात्रा पर निकल गये।

अपने चुटेले अंदाज में व्यंग्य कविता, हज़ल के साथ गद्य लेखन में वे माहिर थे तुकबंदी के साथ सामयिक रचना कर्म में उनका शौक था। वे जब भी किसी से फोन पर या मिलने पर बात करते तो आशु कवि के रुप में दो चार पंक्तियां त्वरित जरुर सुनाते थे, देश में कोई भी घटना हो या कोई विशेष अवसर हो वे त्वरित गद्य और पद्य में लिख देते थे। मंचों पर वे बहुत ही मनोरंजक और हास्य प्रधान प्रस्तुति दे कर श्रोताओं को खूब हंसाते थे, उनकी टिप्पणियां शुद्द व्यंग्य लिए होती थी बिना किसी लाग-लपेट के अपनी बात कहते थे । गोष्ठियों और पारिवारिक मंचों पर भी हास्य से भरपूर रचना का पाठ करते थे ।

टंकी भर है प्यार आपका,चम्मच भर है मेरा।
नई फिल्मों की हीरोइन सा, लागे नया सबेरा।।

गड़बड़ नागर जी का लेखन हिन्दी ,अंग्रेजी और उर्दू के प्रचलित शब्दों की खीचड़ी रहा। वे आलोचक की परवाह किए बगैर मिश्रित भाषा में ही अपनी बात अपने अंदाज में कहते थे। कविता में गद्य और गद्य के बीच कविता शायद इस चंपू विधा ने ही अभिमन्यु त्रिवेदी को गड़बड़ नागर बनाया था। उनने भाषा और शब्दों से कभी परहेज नहीं किया।

गड़बड़ नागर जी की विशेषता थी की वे सरलता और सौम्यता की प्रतिमूर्ति थे,जो उनसे मिला वो उनका मित्र हो गया, अदावत नाम की कोई चीज उनके जीवन में थी ही नहीं । एक बार जिसने उनके स्वभाव को जान लिया वो उनका हो गया।

पिछले आठ सालों से वे 'शाश्वत सृजन' मासिक पत्र के लिए 'सब गड़बड़ है' नाम से कॉलम लिख रहे थे जिसमें सामयिक मुद्दों पर कटाक्ष के साथ महत्वपूर्ण टिप्पणीयों से गुदगुदाते भी थे। साथ ही नागर समाज की पत्रिका के सम्पादन सहयोगी भी रहे। साहित्य और समाज के लिए तन,मन,धन से सहयोग देते थे। अपने पिता जी श्री शुकदेवजी त्रिवेदी की स्मृति में वे संस्था शब्द प्रवाह के माध्यम से गीतकार सम्मान भी प्रतिवर्ष देते थे। उज्जैन शहर की कई साहित्यिक संस्थाओं से सक्रिय रुप से जुड़े हुए थे।

कवि के रुप में गड़बड़ नागर जी ने उज्जैन के निकटवर्ती श्रेत्रों के कई कवि सम्मेलनों में समकालीन मूर्धन्य कलमकार जैसे पं. सूर्यनारायण व्यास, रामधारी सिंह दिनकर, शिवमंगलसिंह सुमन, काका हाथरसी, गोपालदास नीरज, रामावतार त्यागी जैसे कवियों के साथ तो काव्यपाठ किया ही उज्जैन शहर की तीन पीढ़ी के साथ पॉच दशक तक मित्रवत अपनी उपस्थिती दर्ज करवायी।

पेशे से शिक्षक रहे गड़बड़ नागर जी सबके चहेते थे। 18 जुलाई 1944 को जन्में गड़बड़ नागर जी जीवन भर विद्यार्थी भी रहे और शिक्षक भी। साहित्य जगत के कई प्रतिष्ठत सम्मान भी उन्हें मिले, दूरदर्शन और आकाशवाणी पर भी वे काव्य पाठ कर चुके थे। उनकी एक गद्य कृति 'पुरजा पुरजा प्रजातंत्र' एक पद्य कृति 'कुछ लोग ऐसे होते है' प्रकाशित हुई तथा एक ऑडियो सी डी उनकी ही आवाज में 'भड़ास' भी निकली। स्वतंत्र रुप से उनकी रचनाएँ सैकड़ों पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई है। गड़बड़ नागर जी का चले जाना मित्रों के लिए तो दु:खद है ही, साहित्य जगत के लिए भी अपूर्णीय क्षति है। क्योंकि गड़बड़ नागरजी ऑलराउंडर कवि साहित्यकार थे। विनम्र श्रद्धांजलि गड़बड़ नागरजी को...।

संदीप सृजन, उज्जैन

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