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राम- राम कहते रहो (दोहे) -संदीप सृजन


राम नहीं है कल्पना, राम जगत आलोक।
राम नाम के जाप से, दूर रहे भय,शोक।।

राम शब्द छोटा मगर, भरा भाव विस्तार।
राम जीवन की सुचिता,राम श्रेष्ठ व्यवहार।।

राम जगत में उर्ध्व हैं, राम सकल उत्कर्ष।
राम हृदय जिसके रहे, मिटे सभी संघर्ष।।

राम कविता में बसते,राम मयी हर छंद।
राम कहानी में रहे, राम हरेक निबंध।।

राम ही सद् गृहस्थ है, राम रूप वैराग्य।
राम रघुकुल भाग्य है, शबरी के सौभाग्य।।

राम नहीं व्याकुल हुए, सहज रहे हर भाव।
राम नहीं चिंता करे ,धूप मिले या छॉव।।

राम राम कहते रहो, राम जीव आधार।
राम नहीं जो घट रहे, पँहुचे मरघट द्वार।।

-संदीप सृजन, उज्जैन

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