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श्रीराम के स्पंदन से जग होगा निहाल (कविता) -संतोष कुमार महतो


युगों - युगों से चली आ रही है
जिस वसुधा की गौरवगाथा
वह फिर अपनी अतीत को संजोए
अपनी महान विरासत के साथ
अवतारी पुरुष रामलला को कर रहे हैं
दिव्य गृह में भव्य मन्दिर में प्रतिष्ठित
जिसे मुगलों ने किया था कुरीति से कब्जा
अब उनके वंशज को पता चल गया है कि
यह है अवतरित पुरुषों व सनातन की भूमि
शंखनाद की स्वर से भयभीत विदेशी आक्रांता
भारत माता के शीश स्वर्णिम हो उठी
और हिमालय भी अपने से गौरवान्वित होकर
कोटिशः प्रणाम कर रहे हैं पुरुषोत्तम श्रीराम की
दस दशाएँ भी हो रहें हैं स्पंदित
जम्बूद्वीप फिर बन रहा है सोने की चिड़िया
सबके हृदय में मिथिला के पाहुन
सद्भावपूर्ण भाव से हो उठे हैं अंकुरित
वैष्णव के अनुयायी ही नहीं
धरणी भी अनुभव कर रहा है रघुनंदन का स्पदंन
जिससे मानव- जीव जंतु ही नहीं
वनस्पतियाँ भी हो रही है कृतकृत्य
सबके लिए परम सुहृद है श्रीरामनाम
इसी सारतत्व से जग होगा निहाल
और रघुकुल की रीत सदा चली आएगी
प्राण पर वचन न जाए से होगी जग धन्य

-संतोष कुमार महतो, असम

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