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सुनहरा प्यारा बचपन (कविता) -ललित शर्मा


जब था बचपन का जीवन
विद्यालय जाने की चढ़ती धुन
शिक्षक संग समय बिताते थे हम
मित्रों, शिक्षको के संग रहते हम
हंसी खुशी में रहता बचपन
बैठकर पढ़ने में लीन होते हम
पढ़ने खेलने की लगी रहती धुन
खुशियां होती नही कभी कम 

पढ़ने की चढ़ती रहती उमंग तरंग
कतार में हरदम खड़े रहते हम
नियमित प्रार्थना गाते थे हम
शिक्षक के समक्ष रहता मन
बैठे पुस्तको में ध्यान लगाते हम 

घण्टी बजते ही एकाग्र होते हम
शिक्षक हाजिर होते खाता संग
सम्मान करते, खड़े हो जाते हम
कक्षा में आते पढ़ने बैठते हम

आते हाजरी सबसे पहले लगाते,
अपनी उपस्थिति खड़े बताते हम
बचपन में हमें अक्षर ज्ञान के पाठ
सीखनेअपने करीब बिठाते संग
पढ़ाने में एकाएक वे लीन कराते
अन्तर्मन से अक्षर खूब समझाते

पढ़ने की हर जिज्ञासा को
पल में अन्तर्मन में रमाते
रटा रटा कर लिखना पढ़ना
बचपन मे वे खूब सिखाते
नएज्ञान की नितप्रतिदिन
ज्ञान घुंटी वे खूब पिलाते

ज्ञान की घुंटी रोज पीने को
ज्ञान शक्ति खूब वे बढ़ाते
अलमस्त हम खूब खो जाते
आपस में स्नेह प्रेम रखने के
नुस्खे रोज बताते
अक्षरज्ञान की पूंजी से
परिपक्क शिक्षक बनाते

पढ़ने की रुचि हमारी बढ़ाते,
हमें पढ़ाते मजबूत बनाते
नैतिक शिक्षा ज्ञान की बातें
वे रोज हमें शिक्षक समझाते
कहानियां चुटकले सुनाते
कोई नही आपस में ऊंचानीचा
पाठ नियमित ऐसा पढ़ाते

प्रेम सदभाव के सुख सागर में
जमकर डुबकी वे लगवाते
मिलकर रहना प्यारे बच्चों
शिक्षक हमको रोज बताते
स्नेहप्रेम के सच्चेसागर दिखाते
खेल खेलना और प्रेम से रहना
तकनीकि ज्ञानकला सिखलाते

शिक्षक नियमित हम सबसे कहते
एकजुटता सदा रखना प्यारे बच्चों
पढ़लिखकर सन्मान करना बच्चों
परिवार समाज जाति देश सबका
देश भर में नाम रौशन। करना बच्चों
सदा बड़ो के चरण स्पर्श करो बच्चो
सेवाओ को हरदम करते रहना बच्चों
शिक्षा ज्ञान सबसे अनमोल है पूंजी
बशिक्षा की कद्र करना प्यारे बच्चों
दीन दुखियों को गले लगाना बच्चों 

शिक्षकों की प्रेम पूर्वक कही गई भाषाओं में
काल्पनिक नहीं होता था सीखने में हर ज्ञान
जड़ीबूटियों के रस जैसा मिलता पूर्ण ज्ञान
मार्गदर्शक, पथप्रदर्शक, रहते हमारे शिक्षक
करते है प्रणाम उनके शब्द रखते है ध्यान 

-ललित शर्मा डिब्रूगढ़ असम

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