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प्रभावशाली व्यक्तित्व, अच्छा स्वास्थ्य व दीर्घायु, सभी के लिए अनिवार्य है समय की पाबंदी -सीताराम गुप्ता


लगभग ढाई दशक पूर्व की घटना है। मैं एक व्यक्तित्व विकास विषयक कार्यशाला के परिचयात्मक सेमिनार/कार्यक्रम में भाग लेने के लिए पहुँचा। मैं जैसे ही रिसेप्शन पर पहुँचा देखा कि सामने स्थित सेमिनार हॉल का दरवाज़ा बंद हो रहा था। मैंने भी कार्यक्रम में भाग लेने की इच्छा ज़ाहिर की लेकिन रिसेप्शन पर बैठे सज्जन ने बतलाया कि दरवाज़ा बंद हो चुका है और कार्यक्रम प्रारंभ होने के बाद हम देर से आने वाले किसी भी व्यक्ति को कार्यक्रम में भाग लेने की अनुमति देने में असमर्थ हैं। मैं केवल कुछ ही मिनट लेट हुआ था। मिनट नहीं बल्कि कुछ सैकेण्ड लेट था। जैसा कि प्रायः होता है मैंने अपनी तरफ से काफी दलीलें पेश कीं लेकिन वो टस से मस नहीं हुए। ‘‘हमारे यहाँ समय की पाबंदी का बहुत महत्त्व है और हम इसका पूरी तरह से पालन करते हैं, ’’ उन्होंने कहा।

उन्होंने मुझे अगले दिन इस कार्यक्रम में भाग लेने की सलाह दी। मैंने बस इतना ही कहा कि अब इतनी दूर से दोबारा कौन आएगा और लौट आया। लौट के बुद्धू घर को आए वाली स्थिति हो गई थी। अगले दिन किसी भी हालत में न जाने का निर्णय ले लिया था। न जाने का निर्णय तो ले लिया था लेकिन भीतर ही भीतर कशमकश चल रही थी। जो संस्था या व्यक्ति किसी कार्यक्रम के लिए मोटी फीस वसूल करता है और व्यवस्था या समय संबंधी किसी प्रकार की छूट भी नहीं देता उसमें कुछ तो विशेषता अवश्य ही होगी। यह बात मन में आते ही मैंने अगले दिन अवश्य जाने का फैसला कर लिया और किसी भी स्थिति में देर न हो जाए इसलिए उचित अंतराल से वहाँ के लिए चल पड़ा। कार्यक्रम सचमुच अच्छा था अतः न केवल परिचयात्मक सेमिनार/कार्यक्रम में भाग लिया अपितु मूल कार्यक्रम के लिए भी पंजीकरण करवाकर फीस जमा करवा दी।

इस घटना से कई बातें स्पष्ट होती हैं। लेट हो जाने पर परिचयात्मक सेमिनार/कार्यक्रम में भाग न लेने देने पर संस्था की समय के प्रति प्रतिबद्धता ने उसके प्रति सम्मान व विश्वास ही उत्पन्न किया। इस सम्मान व विश्वास के कारण उन्हें न केवल एक प्रतिभागी या ग्राहक मिला अपितु भविष्य में भी कई प्रतिभागी/ग्राहक मिले। यदि हम भी चाहते हैं कि लोगों का हमारे प्रति सम्मान व विश्वास बढ़े तो हमें हर हाल में समय की पाबंदी का ध्यान रखना चाहिए और समय पर हर काम पूरा करना चाहिए। साथ ही मेरा अगले दिन समय पर पहुँचना भी ये सिद्ध करता है कि यदि हम चाहें तो सदैव समय पर पहुँच सकते हैं। लेट होना कोई विवशता नहीं एक आदत होती है। इसी प्रकार से समय की पाबंदी भी एक आदत बनाई जा सकती है। यदि हम अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लें कि हम हमेशा हर जगह समय पर पहुँचेंगे तो कोई कारण नहीं जो हमें लेट कर दे।

बाद में मैंने हमेशा समय की पाबंदी पर और अधिक ध्यान दिया जिसका मेरे व्यक्तित्व पर बड़ा ही अच्छा प्रभाव पड़ा। हमने ऐसे अनेक व्यक्तियों के विषय में पढ़ा अथवा सुना हैं जिनके विषय में प्रसिद्ध था कि वे समय के बहुत अधिक पाबंद थे और जब वे अपने कार्य के लिए घर से निकलते थे तो आसपास के लोग उनको देखकर अपनी घड़ियाँ मिलाया करते थे। अपने एक सद्गुण के कारण वे आज भी अत्यंत प्रतिष्ठित हैं। इसमें संदेह नहीं कि यदि ये आदत विकसित हो जाती है तो जीवन में लाभ ही लाभ है। वास्तव में ये मुश्किल भी नहीं है। प्रतिदिन सिर्फ कुछ मिनट पहले उठने से लेट होने की समस्या का समाधान सरलता से किया जा सकता है। कहीं भी जाना हो सिर्फ दस मिनट पहले चलने से निश्चित रूप से समय पर पहुँच जाएँगे। समय पर तैयार होकर समय पर पहुँचने का सबसे बड़ा लाभ ये है कि हम बेकार के तनाव, भागदौड़ व किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बच जाते हैं। लेट होने का तनाव नहीं रहने से हमारे स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। बेकार के बहाने बनाने से मुक्ति मिलती है और जीवन में सत्यनिष्ठा का समावेश हो जाता है।

अधिकांश व्यक्ति प्रायः जान-बूझकर लेट होते हैं। कई लोगों को यदि अपेक्षित समय से दस-पंद्रह मिनट कम ऑफिस में रहना पड़े या काम करना पड़े तो उन्हें बड़ी ख़ुशी मिलती है। इसी ख़ुशी को पाने के लिए वे हमेशा लेट जाते हैं और इसके लिए कोई न कोई बहाना भी तैयार रखते हैं। लेकिन इसका हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जो बुरा प्रभाव पड़ता है वह बहुत नुकसानदायक होता है। इसका सबसे बुरा प्रभाव तो हमारे व्यक्तित्व पर पड़ता है। हमें झूठ बालने की आदत पड़ जाती है और हर जगह हम इस आदत को व्यवहार में लाने लगते हैं। यदि लेट होने पर हम अपने स्वास्थ्य को लेकर झूठ बोलते हैं तो हमें उसी के अनुरूप अपनी भाव-भंगिमा भी निर्मित करनी होती है। इसका सबसे बुरा प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर ही पड़ता है क्योंकि हमारे विचार अथवा भाव ही हमारे जीवन की वास्तविकता में परिवर्तित होते हैं।

जब हम बार-बार दोहराते हैं कि मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है अथवा ऐसा अभिनय करते हैं तो हमारे अवचेतन में इस बात व भाव की कंडीशनिग हो जाती है और हम सचमुच बीमार होने लगते हैं। यदि हम समय की पाबंदी का कड़ाई से पालन करेंगे तो हमें किसी भी प्रकार की झूठ का सहारा लेने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी जिससे हम ग़लत कंडीशनिंग से बचे रहेंगे और इससे मनोदैहिक व्याधियों से ग्रस्त नहीं होंगे। हमेशा सच बोलने वाले व्यक्ति के आत्मविश्वास का स्तर भी बहुत ऊँचा रहता है। इससे अन्य गुण अथवा अच्छी आदतें भी स्वतः विकसित होने लगती हैं क्योंकि एक अच्छाई कई अन्य अच्छाइयों को जन्म देने में सक्षम होती है। समय की पाबंदी का कड़ाई से पालन करना व्यक्ति के व्यक्तित्व को अत्यंत प्रभावशाली बना सकता है इसमें संदेह नहीं।

यदि हम नौकरी आदि करते हैं तो नियमित रूप से समय पर कार्यालय पहुँचने पर न केवल हमारा कार्य आधा-अधूरा नहीं रहता अपितु हमारा सम्मान भी बढ़ता है। सहकर्मियों अथवा बॉस से संबंध अच्छे रहते हैं। पदोन्नति व अन्य आर्थिक लाभ के अवसर भी अपेक्षाकृत ज़्यादा हो सकते हैं। यदि आप कार्यालय में बॉस के पद पर आसीन हैं तो आपकी समय की पाबंदी से अन्य सभी कर्मचारी व अधिकारी भी समय पर आने-जाने को प्रेरित होते हैं जिससे ऑफिस का काम सुचारु रूप से चलता है। अर्थात् प्रतिदिन यदि कुछ मिनट पहले उठकर या तैयार होकर हम समय पर हर जगह पहुँचने का प्रयास करते हैं तो हमारे जीवन में क्रांति आ जाती है। हमारे व्यक्तित्व के विकास के साथ-साथ हमारे आपसी संबंधों में सुधार व मधुरता उत्पन्न हो जाती है। और समय की पाबंदी का सबसे बड़ा लाभ ये है कि हम हर प्रकार के तनाव से मुक्त रहकर अच्छे स्वास्थ्य व दीर्घायु की ओर अग्रसर होते हैं।

-सीताराम गुप्ता, दिल्ली

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