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शब्द साहित्यिक संस्था का 26 वां वार्षिक समारोह सम्पन्न

कथाकार हृषीकेश सुलभ को मिला एक लाख रुपए का 'अज्ञेय शब्द सृजन सम्मान'
हिंदी सेवी बीएस शांताबाई को इक्कीस हजार रुपए का 'दक्षिण भारत शब्द हिंदी सेवी सम्मान'
बेंगलूरु। दक्षिण भारत की प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था 'शब्द' के 26वें वार्षिकोत्सव के सह पुरस्कार अर्पण समारोह में मूर्धन्य कथाकार हृषीकेश सुलभ को एक लाख रुपए का 'अज्ञेय शब्द सृजन सम्मान' दिया गया तथा वयोवृद्ध हिंदी सेवी बीएस शांताबाई को इक्कीस हजार रुपए का 'दक्षिण भारत शब्द हिंदी सेवी सम्मान' प्रदान किया गया। दोनों सम्मानितों को नकद राशि के अलावा अंगवस्त्रम, स्मृति चिह्न, प्रशस्ति फलक एवं श्रीफल भी भेंट किए गए।


‘अज्ञेय शब्द सृजन सम्मान’ ग्रहण करते हुए कथाकार हृषीकेश सुलभ ने कहा, “अज्ञेय हमारी भाषा के सिरमौर हैं। उनके नाम पर सम्मान पाना स्वप्न के सच होने जैसा है। मलिकार्जुन मंसूर, कुमार गंधर्व और प्रसन्ना की भूमि से सम्मानित होना मेरे लिए बड़ा महत्त्वपूर्ण है.” साथ ही उन्होंने यह भी कहा, “साहित्य के लिए यह संकट का समय है, जबकि आदमी के भीतर की करुणा को जीवित रखना आज के समय की मांग है।”

गौरतलब है, कि ‘दक्षिण भारत शब्द हिंदी सेवी सम्मान’ के लिए कर्नाटक महिला हिंदी सेवा समिति की प्रधान 97 वर्षीया बीएस शांताबाई को व्हीलचेयर से जब मंच पर लाया गया, तो सभागार तालियों से गूंज उठा। उम्र के तकाजों के कारण वे सांकेतिक आभार के सिवा कुछ बोल नहीं पायीं।

समारोह को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि कन्नड़ के प्रख्यात कवि एवं नाटककार एचएस शिवप्रकाश ने कहा, “भारत की एकता राजनीति से नहीं, साहित्य और संस्कृति से है, किन्तु समाज के यांत्रिकीकरण के कारण आज साहित्य और संस्कृति के आस्वादन का खतरा उत्पन्न हो गया है। हर दिशा से शब्द और साहित्य पर हमले हो रहे हैं। विश्वविद्यालयों में साहित्य और संस्कृति का ऐसा संकुचन हुआ है कि आज के युवा दो-तीन सौ से ज्यादा शब्दों का उपयोग नहीं करते, यह स्थिति रही तो भविष्य के बच्चे हमारी भाषा के शब्द बोलना भी बंद कर देंगे।”

प्रारंभ में ‘शब्द’ के अध्यक्ष डॉ. श्रीनारायण समीर ने स्वागत उद्बोधन में कहा, “पूंजी, सत्ता और सत्ता की राजनीति तथा धार्मिक पाखंड विभाजन का काम करते हैं, जबकि कला और साहित्य मनुष्यता की हित-चिंता करते हैं तथा लोगों को आपस में जोड़ते हैं। ‘शब्द’ के इन पुरस्कारों का ध्येय साहित्य और साहित्यकार को समाज के विचार-केंद्र में लाने और समादृत करने की एक कोशिश है। दक्षिण की यह कोशिश उत्तर में यदि कोई हलचल ला सकी तो बाजारवाद की आपाधापी के बावजूद स्थिति बदलेगी और साहित्य एवं कला की पहुंच एवं दायरा बढ़ेगा।”

साथ ही इस अवसर पर ‘शब्द’ के गीतकार आनंद मोहन झा के गीत संग्रह ‘पथ के गीत’ का लोकार्पण भी हुआ। गौरतलब है, कि ‘अज्ञेय शब्द सृजन सम्मान’ नगर के समाजसेवी और अज्ञेय साहित्य के मर्मज्ञ बाबूलाल गुप्ता के फाउंडेशन के सौजन्य से तथा ‘दक्षिण भारत शब्द हिंदी सेवी सम्मान’ बेंगलूरु एवं चेन्नई से प्रकाशित अखबार समूह ‘दक्षिण भारत राष्ट्रमत’ के सौजन्य से प्रदान किए जाते हैं। कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ उषारानी राव ने किया और धन्यवाद ज्ञापन श्रीकान्त शर्मा द्वारा हुआ।

समारोह के प्रथम सत्र में आयोजित कवि सम्मेलन में स्थानीय एवं अतिथि कवियों ने अपनी कविताएं सुनाईं।कवि सम्मेलन की मुख्य अतिथि अनुराधा सिंह एवं युवा कवयित्री लवली गोस्वामी की कविताओं का स्वर स्त्रीविमर्शवादी था, जबकि वरिष्ठ कवि अनिल विभाकर की कविताओं में सामाजिक विडंबना का स्वर प्रखर था. कवि सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री रचना उनियाल ने की और संचालन हंसराज मुणोत ने किया।समारोह में देश की सांस्कृतिक विविधता एवं एकता की झलक दिखाने वाली नृत्य प्रस्तुतियां ने लोगों का मनमोह लिया।

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