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विश्व भाषा अकादमी और सूत्रधार संस्था की दीपावली स्नेह मिलन काव्य गोष्ठी सम्पन्न


हैदराबाद। विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई एवं सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत, हैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 45 वीं मासिक गोष्ठी को 'दीपावली स्नेह मिलन' के रूप में मनाया गया। 

संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी सदस्यों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और दीपोत्सव एवं देव दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं प्रदान की। उन्होंने वरिष्ठ साहित्यकार एवं नाटककार सुहास भटनागर को गोष्ठी की अध्यक्षता करने हेतु मंच पर आमंत्रित किया। श्रीमती शुभ्रा मोहन्तो ने सरस्वती वन्दना प्रस्तुत करके कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। तत्पश्चात् श्रीमती रिमझिम झा ने स्वरचित वाणी वंदना प्रस्तुत की। सरिता सुराणा ने संस्था के कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी प्रदान की और बाल दिवस पर आयोजित विशेष कार्यक्रम के लिए संगीत साधना संगीतालय की संचालिका श्रीमती शुभ्रा मोहन्तो और नन्हे-मुन्ने बाल कलाकारों को धन्यवाद दिया। काव्य गोष्ठी प्रारम्भ करते हुए श्रीमती भावना पुरोहित को मंच पर सादर आमंत्रित किया। उन्होंने तीन तरह की रंगोली से सम्बन्धित मनमोहक रचना प्रस्तुत की। उसके बाद श्रीमती तृप्ति मिश्रा ने दीवाली से सम्बन्धित रचना बुराई पर अच्छाई की जीत और श्रीमती किरन सिंह ने आ गई फिर से दीवाली की बहुत ही शानदार प्रस्तुतियां दीं। 

श्रीमती ज्योति गोलामुडी ने और श्रीमती आर्या झा ने- दीवाली खुशियों का त्यौहार रचनाएं प्रस्तुत की। बेंगलुरु से श्रीमती अमृता श्रीवास्तव ने- खामोश अकेले जलते क्यूं हो जैसी सशक्त रचना का पाठ किया तो कोलकाता से श्रीमती सुशीला चनानी ने- मैं एक बुझा हुआ दीपक के माध्यम से दीपक की व्यथा का बखान किया। कटक, उड़ीसा से श्रीमती रिमझिम झा ने छठ पर्व का महत्व बताते हुए अपनी रचना प्रस्तुत की। वरिष्ठ साहित्यकार दर्शन सिंह ने पंजाबी भाषा में अपनी रचना- हंस लेना चाहे कदै-कदै बेवजह भी यारा प्रस्तुत करके सभी का मन मोह लिया। 

वरिष्ठ साहित्यकार चंद्रप्रकाश दायमा ने दीवाली पर पटाखे छुड़ाने जैसे रिवाज को बदलने की बात कही। उन्होंने कहा कि इससे पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ता है और हम सबको ही तकलीफ होती है लेकिन फिर भी लोग धर्म के नाम पर पुरानी प्रथाओं को ढो रहे हैं। उन्होंने वर्तमान राजनीतिक गठबंधन पर व्यंग्य करते हुए अपनी रचना- कौए एक-दूसरे को दूध से नहला रहे हैं का पाठ किया। सरिता सुराणा ने- दीप जल, तम हर, प्रकाश कर/अपने अन्तर में उजास भर जैसी सशक्त रचना का पाठ किया और त्यौहारों पर आडम्बर और फिजूलखर्ची से बचने को कहा।

अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए सुहास भटनागर ने- दोपहर जब सूरज थक जाता है/तीसरे पहर आराम करना चाहता है/सूरज शाम का इन्तजार करता है रचना का पाठ किया। उन्होंने सभी सहभागियों की रचनाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की और सभी को बधाई दी। साथ ही साथ आगामी कार्यक्रमों के बारे में जानकारी दी। सभी सहभागियों ने गोष्ठी की सफलता हेतु बधाई दी। आर्या झा के धन्यवाद ज्ञापन से गोष्ठी सम्पन्न हुई।

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