शांति से रहो सखे (ग़ज़ल) - गोपालकृष्ण भट्ट 'आकुल'
शांति से रहो सखे।
धैर्य से जियो सखे।
तर्क हो विवाद हो,
द्वंद्व से बचो सखे।
बात को खरी-खरी,
क्यों सदा कहो सखे।
दौड़-भाग कम करो,
भीड़ से टलो सखे।
प्रातराश में सदा,
एक सेब लो सखे।
बाद एक उम्र क्यों
मोह में पड़ो सखे।
मित्रता सदैव ही,
कामयाब हो सखे।
-गोपालकृष्ण भट्ट आकुल, कोटा
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