Subscribe Us

बुजुर्ग धरोहर है, बोझ नहीं -पदमचंद गांधी


भारत में बुजुर्गों के सम्मान की परम्परा रही है और हम इस बात पर गर्व करते रहे है कि हमारे देश में नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी की उपेक्षा नहीं करती बल्कि उन्हें पूरा सम्मान देती है और उनके अनुभवों की कद्र भी करती है। लेकिन बढ़ते बाह्य प्रभावों, ध्रुवीकरण, उदार अर्थव्यवस्था, पश्चात प्रभाव, ने आम आदमी की जिन्दगी को तेज बना दिया है। स्पर्द्धा के दौर में व्यक्ति तरक्की के फेर में बहुत कुछ भूलता जा रहा है। रिस्तों को सीमित कर रहा है। हमारे बुजुर्ग अपनी सूजबूझ एवं समझ तथा तजुर्बों से युवा पीढ़ी एवं घर परिवार को सार्थक दिशा देने वाले होते है लेकिन आज व्यक्ति अपने आप में इतना खो गया है कि उसे अपने बुजुर्गों से मार्ग दर्शन प्राप्त करने का समय ही नहीं है। हमें गर्व है कि आज भारत की युवा पीढ़ी पर भारत की कुल जनसंख्या की 10 प्रतिशत आबादी 60 वर्ष के उपर वाले बुजुर्गों की छांव है जो वर्ष 2026 में 17 करोड़ तक हो जायेगी। भारत में रोजाना लगभग 17 हजार नये लोग 60 वर्ष के होकर जुड़ जाते हैं। ऐसे बुजुर्गों का अनुभव, संरक्षण हमारे लिए छत्र छाया का कार्य करती है। लेकिन विडम्बना यह है कि आज हमारे बुजुर्गों की परिवार एवं समाज में उपेक्षा एवं तिरस्कार की घटनाएं बढ़ती जा रही है इतना ही नहीं आज बुजुर्ग अपने ही परिवारजनों में बेगाने की जिन्दगी जी रहे है।

युवा पीढ़ी जो अपने को व्यस्त मान रही है, जो बुजुर्गों से वैचारिक मतभेद ही नहीं वरन् हर प्रकार की दूरियां रखती है, उन्हें सोचने की जरूरत हैं क्योंकि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है यदि परिजन स्वयं के स्वार्थ के लिए यदि इन बुजुर्गों को थोड़ा सम्मान, थोड़ा प्यार, थोड़ा अपनापन तथा थोड़ा समय निकाल कर इनको दे दे तो परिजनों को वो तोहफा ये बुजुर्ग दे सकते है जो कभी वे पैसे के बल पर नहीं खरीद सकते बस थोड़ा सा त्याग करने की आवश्कयता है। बुजुर्ग हमारे लिए अतिमहत्वपूर्ण एवं उपयोगी है उन्हें निम्नानुसार समझेः-

बुजुर्ग हमारी सांसकृति के अभिन्न अंग हैः- हमारी संस्कृति एवं पारस्परिक गति-विधियों की रक्षा इन बुजुर्गों के द्वारा ही होती है। खानदान एवं ठिकाने की पहचान इन बुजुर्गों से होती है, जो गुडविल या ख्याति हमारे बुजुर्गों ने, अभाव की जिन्दगी में रह कर कमाई है वह गुडविल आज हम लाखों रूपये कमा कर नहीं प्राप्त कर सकते। जो रिस्ते ये घर बैठे बना लेते थे वे रिस्ते आज हम मिड़िया, इलैक्ट्रोनिक उपकरण, या घूम घूम कर नहीं बना सकते। जितनी विश्वसनीयता इन लोगो ंकी थी आज हमारी नहीं है। आज परिवारों की नींव खोखली होने का कारण यही है कि हम हमारी संस्कृति को भूल गये है। परिवार की नींव को मजबूत करने और बच्चों को रिस्तों की गंभीरता व उनका सम्मान करना सिखाने के लिए घर के बुजुर्गों के साथ उनका समय बिताना जरूरी है। उनकी उपेक्षा के बजाय उन्हंे सम्मान देवे उनके संरक्षण की छाव में रहे तो निश्चित रूप से आप तनाव रहित रहेगें। उनकी अवहेलना का अर्थ है जीवन के लिए उपयोगी ज्ञान व अनुभवों की अवहेलना। युवा इस बात को सदैव याद रखे कि एक दिन हम भी इस अवस्था को प्राप्त करेंगे और आपके बच्चे आपसे आगे ही होंगे। यदि आज के युवा इस बात समझ ले तो आपका घर स्वर्ग बन जायेगा। क्योंकि सच्चे अर्थों में बुजुर्ग ही हमारी संस्कृति के रखवाले हैं। यदि बुजुर्गों के साथ बच्चे रहते है तो वे अपनी परम्पराओं और संसकृति के साथ सहजता से ही जुड़े हो जाते है इसके लिए उन्हें अलग से केाई प्रयास नहीं करना पड़ता।

बुजुर्गों की गोद उर्वक भूमि की तरह- आज के भगमभाग की जिन्दगी में तथा खास तौर पर उन परिवारों में जहां पति पत्नी दोनों सेवारत हो वहां पर बच्चों की देखभाल करने के लिए आया या क्रेच का सहारा लेना पड़ता है क्योंकि ऐसे अभिभावक अपने बुजुर्गों को बेझ मानकर उनसे अलग रहते है लेकिन वे यह भूल जाते है कि घर के बुजुर्गों की गोद तो उर्वरक भूमि से ज्यादा उपजाऊ है जहां पर बच्चों के संस्कार पल्लवित होते है। घर की सुरक्षा के साथ बच्चों की भी सुरक्षा होती है तथा उनका मानसिक विकास तीव्रगति से होता है। क्येांकि ये रिस्तों के बीच में एक पुल का काम करते है।

बुजुर्ग तो अपने अनुभवों के चलते फिरते पुस्तकालय होते हैं। वे बच्चों को रोमांचक, ज्ञानवर्धक, रोचक संस्मरण तथा कहानियां सुनाकर, पौराणिक बाते एवं परम्परागत रीति-रिवाज बताकर उन्हें ताजा एवं तर रखते हैं। ‘जुग जुग-जिओ‘ तथा नाना प्रकार के आर्शीवाद के सिंचन से बचपन को मजबूत करते है। जिनसे बचपन बखूबी पनप सकता है। ऐसा बचपन सौभाग्यशाली है जिसे बुजुर्गों का समर्थ सम्बल मिलता है, जिनकी गोद में बच्चे सोते है। ऐसे व्यक्ति निश्चित रूप से जीवन पर्यन्त एक गहरी भावनात्मक सन्तुष्टि एवं दृढ़ता लिए होंगे और जीवन की चुनौतियों का आसानी से सामना करने की स्थिति में भी होंगे।

बुजुर्ग बच्चों के विकास में सहायक- घर में जितने भी बुजुर्ग होते है वे अधिकांश पढ़े लिखे होते है अनुभवशील होते है उनकी योग्यता बच्चों की मानसिकता पर अच्छा प्रभाव डालती है वे सरल तरीके से उन्हें पढ़ा सकते है, होमवर्क करा सकते है, उनके साथ खेल सकते है, गार्डन में ले जा सकते है इतना ही नहीं कहते है, मूल से ब्याज प्यारा होता है। दादा-पोतो की जोडी तो दोस्ती की तरह होती है क्योंकि माता-पिता के समयाभाव के कारण या उनके डर के कारण बच्चे सारी बाते दादा को आसानी से शेयर करते है तथा दादा उनकी सभी समस्याओं का निराकरण कर देते है कठिन से कठिन बात का हल आसानी से समझा देते है। बुजुर्ग उनकी कोमल मानसिकता के कायल होते है। उन्हें डांटते भी है तो भी प्यार से। ये सभी बाते बच्चों की मानसिकता पर बच्चों के प्रारम्भिक जीवन में बुजुर्गो का साथ उनकी भावी जीवन की नींव रखने में अपना उल्लेखनीय योगदान दे सकते हैं। बच्चों की शिक्षा एवं संस्कार में उनका अनुकरणीय योगदान रहता है। जो पेरेन्टस बुजुर्गों का सम्मान नहीं करते उन्हं अलग रखते है, वे इस सुख का अनुभव भी नहीं कर सकते। यदि वे ऐसा करते है उन्हें साथ रखते है तो उन्हें गहरी सन्तुष्टि एवं शान्ती मिलेगी और साथ ही जीवन की आपा-धापी में खोए तनावग्रस्त माता-पिता के लिए भी वे एक बहुत बउ़ा संबल साबित होंगे।

अनुभवों की पाठशाला- जो व्यक्ति या युवा माता-पिता अपने बुजुर्गों का तिरस्कार करते है उन्हें नकारते वे सहजता के लाभ से वंचित रह जाते है उनको सिवाय कुंठा एवं घुटन के अलावा कुछ प्राप्त नहीं होता है। वे अशान्त तो होते ही है साथ में अपनी स्वयं की समस्याओं से घिरे रहते है तथा उनका समाधान भी वे नहीं निकाल पाते। कहते है बाल सफेद ऐसे ही नहीं होते है बड़ा तपना पड़ता है, जीवन को संघर्ष के साथ जीवन यापन करने वाले बुजुर्ग चोपाल पर समस्याओं का हल निकालते हुए पंचायत के बड़े-बड़े फैसले आसानी से कर लेते है। उनका अनुभव इतना परिपक्व होता है कि कैसी भी समस्या हो बड़े धैर्य के साथ, उसका समाधान एवं तोड़ निकाल लेते है जब कि आज के युवा जल्दबाजी में तथा हाजिर परिणाम के फेर में समस्या को और उलझा देते है। यदि ऐसे युवा माता-पिता अपने बुजुर्गों की छत्र छाया में रहे तो उन्हें कोई समस्या नहीं आयेगी, क्योंकि संभालने के लिए बुजुर्ग है। यदि आ भी गयी तो उसका समाधान वे आसानी से निकाल कर समस्या को हल कर देते है।

परिवार के कुशल मार्ग दर्शक- घर के बुजुर्ग अपने अनुभवों के आधार पर परिवार के कुशल मार्ग दर्शक भी सिद्ध होते है। युवा पीढ़ी के लिए भले ही उन्हें बुजुर्ग नये जमाने के अनुसार ठीक नहीं लगते हो लेकिन यह सच है जब युवा पटरी से उतर जाता है तो उन्हें लाइन पर लाने का कार्य ये आसानी से कर लेते हैं बशर्ते कि उनका सम्मान हो, उनकी बात को समझने वाला हो। क्योंकि समय के थपेड़ों के बीच टूटते बिखरते परिवारों को प्रेम से जोड़ने का कार्य वे सहजता से सम्पन्न कर सकते है। अचछी बुरी बात, गुण-अवगुण की परख तथा अपने स्वयं के लम्बे अनुभव से बुजुर्ग हर ऐंगल से परिवार के मार्ग दर्शक बन सकते है।

बुजुर्ग घर परिवार की मुख्य धूरी होते है, घर की रीढ़ होते हैं। हमें वे न केवल अपना आशीष व दुलार देते है बल्कि अपने जीवन के अनमोल अनुभव भी खोलकर लुटाते है जो कि मनुष्य के जीवन में बहुत सहायक होते है वे हमारी झोली कई तरह के आर्शीवादों से भरते रहते है जैसे- ‘दूदो नहावो पूतो फलो‘, ‘फलोफूलो‘, ‘दीर्घायु‘ हो इस प्रकार की दुआओं से व्यक्ति प्रफुल्लित रहता है।

विशाल वट वृक्ष की छांव- आज हम भले ही भौतिकता की अंधी दौड़ में आगे निकल गये हो लेकिन रिस्तों की शालीनता में बहुत पिछड़ गये है। आदर, प्यार, कृतज्ञता, आज्ञाकारिता, समर्पण के धागे से बन्धे रिस्ते जो हमारी विशेषता थी, आज तार-तार हो रहे है, क् हमारे समाज का मूल आधार हमारे मधुर रिस्ते रहे है लेकिन आज की तेज भागती जिन्दगी ने इन सभी को पिछे घकेल दिया है। पैसा बढ़ रहा है, जीवन स्तर बढ़ रहा है, संसाधन बढ़ रहे है, आलिशान मकान बढ़ रहे है लेकिन ‘वट वृक्ष‘ धराशाही हो रहा है। ये सभी संसाधन, इनका उपयोग वट वृक्ष की छांव में ही अच्छे लगते है। मनुष्य बहुत ताकतवर होता है वह कितनी भी विपत्ती आ जाये अपने मन को मजबूत रखता है लेकिन बुजुर्ग ही ऐसी थाती है जिसके सामने कठोर से कठोर मनुष्य भी अपने बुजुर्गों के सामने पिगल जाता है, फूट पड़ता है रो पड़ता है और अपने बुजुर्ग के सामने यदि समर्पण भाव से बात बता देता है तो वह हल्का भी हो जाता है क्योंकि धूप को सहने वाला बुजुर्ग घर में है तो परिजनों को शीतल छांव अवश्य मिलती है। यदि आपने वट वृक्ष को ही हटा दिया तो छांव के लिए भटकने के अतिरिक्त और कुछ भी शेष नहीं बचता। अतः अपनी विरासत को धराशाही मत होने दो क्योंकि ये ही हमारे वट वृक्ष है जिनकी शीतल छांव में हम और हमारा परिवार पल्लवित होता है।

बूढ़ा पेड़ फल दे या ना दे पर वह छांया अवश्य देता है। इतना ही नहीं इनकी जड़े इतनी मजबूत होती है कि वे हर झंझावतों को झेल सकते है। अतः इनके ज्ञान के खजाने का हमे लाभ लेना है तो इन्हें दूर मत कीजिए। इनके साये में आप पूर्ण सुरक्षित है। लेकिन यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि आज बुजुर्ग सुरक्षा और संरक्षण के लिए भटकने को मजबूर है। तिरस्कार और परायापन उन्हें द्रवित कर रहा है।

बुजुर्ग हमारी धरोहर है- हमारे बुजुर्ग हमारी धरोहर है, हमारी इज्जत है, इनका सम्मान करना तो हमारी संस्कृति है, हमारा नैतिक कर्तव्य है। क्योंकि उपरोक्त सभी कारणों के साथ साथ इनका सद् उपयोग करे हम लाभान्वित हो सकते है। इनके लम्बे अनुभवों से हम राष्ट्र की सांस्कृतिक दीवारों को मजबूत बना सकते है। वृद्ध एक संबल, तथा जीवन को संवारने का माध्यम होते है। खानदान और ठिकाने इन्हीं के त्याग, समर्पण तथा संघर्षों की सफलता पर टिके होते है जो आज धराशाही हो रहे है यदि इनकी आप इज्जत करते है तो आपकी इज्जत में स्वतः ही चार चांद लग जाते है। अतः इनके जीवन को संवारे। जिस प्रकार से हम कीमती सामानों की, एन्टीक वस्तुओं की, कांच के बर्तनों की हिफाजत करते है ठीक उसी प्रकार हमारे बुजुर्ग है जिनकी देखभाल हम कर सकते है। लेकिन देखने में आता है आज ये नौकरों के सहारे, या वृद्धाश्रम में अपना दयनीय जीवन व्यतीत कर रहे है लाचार की जिन्दगी जी रहे है। इन्हें हासिये पर देखा जाता है। यह प्रश्न चिन्ह क्या आपके मन मस्तिष्क में नहीं उठता क्यों? जिस लाड़ प्यार से आपको पाल पोषकर योग्य बनाकर आपका परिवार बसाया उसकी सजा क्या इन्हें अलग करना है? नहीं। इन्होंने अपनी जवानी को आपके भविष्य के लिए दाव पर इसलिए लगा दिया क्योंकि आप का जीवन आरामदायक बने आप कुछ बन सके। लेकिन आपने तो अपनों को ही पराया कर दिया। आप यही सोचेगें कि हम भी हमारे बच्चों के लिए वहीं कर रहे है जो हमारे बुजुर्गों ने हमारे लिए किया है यह बात शतप्रतिशत सही है लेकिन आप एक भूल यहां पर कर रहे है इन बुजुर्गों ने कभी अपने बुजुर्गों को अलग नहीं किया सदैव अपना प्यार, सेवा, एवं श्रृद्धा से उनके साथ निर्वाह किया लेकिन आप इस बात को नहीं सोचते। यदि नहीं तो आपके लिए भी ऐसा ताना बाना बुनने वाले आपके ही नोनिहाल तैयार है, जिसे आपको वहीं ‘दंश‘ झेलना पड़ेगा। अतः वक्त के साथ संभलने में समझदारी है।

आशा करता हूं यह लेख बड़ा भावनात्मक है, मै स्वयं लिखते लिखते भावुक हो गया हूँ बस पाठकों से इतना ही निवेदन करता हूँ कि कभी अपने बुजुर्गों को पराया मत समझना इन्हें तो सिर्फ सम्मान और प्यार चाहिए भले ही इसके लिए आपको अपनी स्वच्छन्दता छोड़नी पडे। क्योंकि इतने सारे लाभों को देखते हुए आपकी स्वच्छन्दता नगण्य है, गौण है, उसका इतना अधिक महत्व नहीं है जितने इसको त्यागने में जो लाभ आपको प्राप्त होने वाले है उन्हीं पर आपको फोकस करना है तभी आप सुखमयी एवं बुजुर्ग समृद्ध बन सकेंगे।

-पदमचंद गांधी, भोपाल

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ