कोहरे की जमातें (नवगीत) -अशोक आनन
आइसक्रीम - से दिन -
कुल्फ़ियों - सी रातें ।
धूप की गर्मी -
धरी की धरी रह गई ।
सुबह ही शाम से -
उसकी पोल कह गई ।
जनवरी के आगे -
टिक न पाईं बातें ।
अलावों को कंपा रहीं -
ठंडी हवाएं ।
सुबह को रुला रहीं -
पानी की सज़ाएं ।
हवाओं ने फाड़ दीं -
धूप की कनातें ।
सूरज भी अब किसी को -
दिखा रहा न मुंह ।
दोपहर की भी जमकर -
पत्थर हुई रुह ।
जाड़े में बंद पड़े -
गर्मी के खाते
पंछी भी अलसाकर -
जगें अब देर से ।
धूप का बाज़ार भी -
खुले न सवेर से ।
रात से जम गईं -
कोहरे की जमातें ।
-अशोक आनन,मक्सी
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