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माहिया -कमल कपूर


अंबर पे बादल हैं
बिन बरसे लौटे
ये कितने पागल हैं ।
*
मधु सा मीठा पानी
पर भोली नदिया
खुद से ही अनजानी।
*
अमृत सी हवाएँ हैं
पीहर से आई
मनु माँ की दुआएँ हैं ।
*
कितने गम सहती है
पर कुछ ना कहती
माँ जैसी धरती है।
*
अब खोज रही अखियाँ
सुरमे - काजल सी
बचपन की सब सखियाँ ।
*
बचपन क्या छूट गया
बेरी इमली के
बूटे भी लूट गया ।
*
पिय की सौग़ातें हैं
मख़मल से दिन तो
रेशम सी रातें हैं ।

-कमल कपूर, फरिदाबाद

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