अंबर पे बादल हैं बिन बरसे लौटे ये कितने पागल हैं । * मधु सा मीठा पानी पर भोली नदिया खुद से ही अनजानी। * अमृत सी हवाएँ हैं पीहर से आई मनु माँ की दुआएँ हैं । * कितने गम सहती है पर कुछ ना कहती माँ जैसी धरती है। * अब खोज रही अखियाँ सुरमे - काजल सी बचपन की सब सखियाँ । * बचपन क्या छूट गया बेरी इमली के बूटे भी लूट गया । * पिय की सौग़ातें हैं मख़मल से दिन तो रेशम सी रातें हैं ।
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