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मतदान पर्व (गीत) -अशोक आनन


मतदान का फ़िर पर्व आया ।
उत्साह सबके मन में छाया ।

मतदान सभी को करना है ।
ईमानदार को चुनना है ।
देशहित का जो काम करे -
ताज उसी के सिर धरना है ।

मतदान से कोई छूटे न -
मतदान का सुअवसर आया ।

भ्रष्टाचार में न वह डूबा हो ।
न किसी का जीजा- फूफा हो ।
देशसेवा का वह व्रती हो -
दिल में बस देशसेवा हो ।

लोकतंत्र के मंदिर में फ़िर -
दीया फ़र्ज़ का जगमगाया ।

अपनी क़िस्मत ख़ुद लिखना है ।
हम अनमोल , नहीं बिकना है ।
कोई कितना तोड़े - फोड़े -
हमें सदैव एक दिखना है ।

प्रजातंत्र का हुआ सवेरा -
सूरज वोट डालने आया ।

वादों के झांसे भी होंगे ।
चौपड़ के पांसे भी होंगे ।
सोने - चांदी के बीच कई -
पीतल भी , कांसे भी होंगे ।

झूठ - फ़रेब की मरीचिका ने -
मृग - मतदाता को भरमाया ।

आरोप हैं , प्रत्यारोप हैं ।
पर ज्वलंत मुद्दे लोप हैं ।
मतदाताओं के मन में आज -
बस इसी बात का कोप है ।

सर्वधर्म समभाव के बाग में -
फूल सद्भाव का मुस्कुराया ।

-अशोक आनन, मक्सी

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