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रोटी मेकर (लघुकथा) -अशोक आनन


बेटे ने प्रायश्चित करते हुए मां से कहा - ' मां ! तुझे अपने साथ रखने से तो अच्छा है , मैं रोटी मेकर ही ले आऊं । एक बार ही तो रुपया ख़र्च होगा । तुझ पर हर बार बर्बाद होने वाला पैसा तो बच जाएगा । '
मां ने अपने प्रति उसकी भावना सुन , उससे पूछ ही लिया - 'पर...बेटा ! तू रोटी मेकर से बनी रोटियों में...मां के हाथों से बनी रोटियों का स्वाद कहां से लाएगा...? '
मां के इस छोटे - से प्रश्न ने ...उसे निरुत्तर कर दिया था ।

-अशोक 'आनन',मक्सी

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