हमने अपने जीवन को भागदौड भरा तो बनाया ही है हमारी लाइफ स्टाइल डिसऑडर होने के साथ साथ हमारे बच्चों की भी लाईफ स्टाइल बिगड़ रही है। बच्चों का मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा है जिससे बच्चों का सम्पूर्ण विकास नहीं हो पा रहा है। हाँ यह बात सच है उनकी इन्टेलिजेन्सी बढ़ी है। बच्चे शत प्रतिशत अंक लाने की रेस में तैयार खड़े है। 95 प्रतिशत के बाद भी बच्चा खुश नजर नहीं आता। क्योंकि वह ‘‘तुलना‘‘ के क्षेत्र में उतर चुका है, जिसका मूल कारण उसकी ‘स्किल्ड‘ नहीं उसके द्वारा प्राप्त वो ‘अंक‘ जो प्रतियोगिता में सबसे अधिक लेकर आता है। इस दोषपूर्ण चयन प्रणाली ने बच्चों को तनावग्रस्त कर दिया है उसके साथ उनके माता पिता भी उनके साथ लगे रहने से वे भी तनाव से ग्रस्त है।
अध्ययनों से सामने आया है कि बस्ते के बोझ के साथ बच्चों के दिमाग पर भी स्ट्रेस इतना बढ़ गया है कि उनके मानसिक और शारीरिक विकास में बाधाएं आ रही है लेकिन उनके व्यवहार में भी परिवर्तन हो रहा है। एक मिडियाग्रुप के सर्वे के अनुसार सामने आया है कि 66 प्रतिशत छात्रों ने यह माना है कि उनके माता पिता उन पर अच्छे नम्बर लाने का दबाव डालते है। इनमें से 6.23 बच्चे इस दबाव के कारण दुष्कृत्य कर लेते है।
देखने में आया है कि पढ़ाई के दबाव से परेशान सातवीं और आठवीं के तीन छात्र दिल्ली से आगरा पहुंच जाते हैं। कोई बच्चा अपनी पढ़ाई के दबाव के कारण परीक्षा पत्र में सुसाइड नोट लिख आता है। असफलता मिलने पर गलत कदम उठा लेते है। इसका कारण है कि वर्तमान में शिक्षा को चुनोतीपूर्ण ओर प्रतिस्पर्द्धात्मक बना दिया है। ‘‘परिणाम‘‘ को ज्यादा महत्व दिया जाता है उसके भीतर छुपी हुई प्रतिभा को नही। जिसके कारण छात्रों पर अच्छा प्रदर्शन और टॉप करने के लिए दबाव बना रहता है। जिसे हम शैक्षणिक तनाव भी कह सकते है। बच्चों में आज तनाव के एक कारण नहीं है, उसके कई कारण है जिनमें से प्रमुख इस प्रकार है-
स्वयं के द्वारा पैदा किया गया तनावः-
छात्र आज कई प्राथमिकताओं में उलझा रहता है जिसके कारण वह अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पा रहा है। वह कम्प्यूटर, मोबाईल, व्हाट्सऐप में व्यस्त रहता है। कई बार तो वह स्वयं स्कूल कॉलेज से छुट्टी ले लेता है, अनिद्रा, भय, चिन्ता, डर उसे परेशान करने लगते है, जिनके कारण वह घबराया हुआ रहता है और स्वभाव से चिड़चिड़ा भी बन जाता है। बच्चों के बेसमय पर सोने से उनकी नींद पूरी नहीं होती जिसके कारण उनकी एकाग्रता प्रभावित होती है, तथा पढ़ाई में कमजोर हो सकते हैं।
आस्ट्रेलिया की क्वींसलैण्ड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में किए गये एक शोध में स्पष्ट किया कि इनमें से पांच वर्ष की आयु तक बच्चों की नींद प्रक्रिया को यदि व्यवस्थित नहीं किया गया तो बच्चों के स्कूल समय के साथ सामंजस्य बैठाने में परेशानी हो सकती है शोध में यह भी स्पष्ट हुआ कि नींद के अनियमित होने से उनकी यादास्त भी अच्छी नहीं हो सकती अतः नींद मानसिक विकास के लिए आवश्यक है। लेकिन पढ़ने वाले बच्चे देरी से सोते है देरी से उठते हैं उनकी नींद अनियमित हो रही है।
माता-पिता, भाई-बहन, और दोस्तों से दवावः-
परिवार बच्चे की पहली पाठशाला होती है। परिवार में रहकर बच्चा दूसरों के साथ किए जाने वाले व्यवहार को सीखता है। लेकिन यदि माता-पिता के बीच में तनाव हो, झगड़ा हो तो घर का माहोल तनावपूर्ण बन जाता है, जिसका सीधा असर बच्चों पर पड़ता है तथा उनका भविष्य असुरक्षित भी हो सकता है। पति-पत्नि के बीच होने वाला झगड़ा न केवल बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है बल्कि उनके मानसिक विकास पर भी बुरा असर डालता है। इससे बच्चों में कई तरह के विकार उत्पन्न हो सकते है। अध्ययनों के अनुसार बच्चों के व्यवहार पर उनके माता-पिता के व्यवहार की छाप दिखाई देती है। बच्चों के व्यवहार में 90 प्रतिशत असर उनके अभिभावकों के व्यवहार का होता है। यदि घर का माहौल लड़ाई झगडे का होगा तो बच्चे स्वभाव से गुस्सैल, चिड़चिड़े और ईर्ष्या वाले होंगे तथा वे मानसिक रूप से बिमार भी पड़ सकते है जिनके परिणाम हैः-
बच्चो का सहमे रहना- पेरेन्टस इस बात को भूल जाते है कि बच्चो के सामने झगड़ा मारपीट, बहस और अपशब्दों के प्रयोगों से बच्चे सारी उम्र सहमे-सहमे रहते है, जिसके कारण उनके द्वारा रिस्ते निभाने में भी डरते है।
स्वयं को झगड़े का कारण समझना- बच्चे स्वयं, खुद को झगडे का कारण समझ लेता है, क्योंकि उसके मन में कई तरह के प्रश्न उठते है‘‘ कही झगड़े का कारण मै तो नहीं हूँ‘‘-ये प्रश्न वह खुद से ही करता है।
चिड़चिड़ा और गुस्सैलः- घर के झगड़ों को देख कर बच्चों का स्वभाव चिड़चिड़ा और गुस्सैल बन जाता है ऐसा स्वभाव आगे चलकर उनके जीवन में कई तरह की मुश्किलें खड़ी कर देता है।
डिप्रेशन- स्वभाव के बदलने के कारण या उनके मन में उठने वाली कुण्ठाओं के कारण वे डिप्रेशन में चले जाते है। गुमसुम रहने लगते है। एकाकी बन जाते है।
मानसिक रूप से परेशानः- ऐसे माहौल में रहने वाले बच्चों का मानसिक विकास अच्छी तरह से नहींे हो पाता। मियमी (अमेरिका) में हुयी एक रिसर्च के अनुसार बच्चों के शरीर के इम्यून सिस्टम पर लड़ाई झगड़ों का गहरा असर होता है।इससे इम्यून सिस्टम की बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है। यदि बचपन से बच्चे माता-पिता के लड़ाई झगड़े देखते है तो उनके कोमल मन पर बहुत बुरा असर पड़ता है। वे जल्दी जल्दी बीमार पड़ते है तथा गम्भीर बिमारियों के शिकार हो जाते है।
यदि घर मे भाई-बहिन के रिस्ते अच्छे नहीं है, उनमें भेद भाव किया जाता है, या दोस्तों के लिए टोका टाकी की जाती है तो इनका असर भी बच्चों के विकास पर पर भी पड़ता है।
उपरोक्त सभी कारणों से स्पष्ट है कि झगड़े, दुर्व्यवहार, भेदभाव, मन-मुटाव, इत्यादि से बच्चे तनाव में रहते है तथा अपने आपको असुरक्षित महसूस करते है। जिसकी वजह से वे स्कूल में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते। रोचेस्टर सिरेक्यूज और नोट्रेडम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने तीन वर्ष की अवधि के दौरान 216 बच्चों उनके अभिभावकों और शिक्षकों के बीच अध्ययन में किया गया जिसमें पाया गया कि माता-पिता के सम्बन्धों को लेकर तथा बच्चों की चिन्ता पर हुए इस अध्ययन में पाया गया कि माता-पिता के तनाव भरे सम्बन्धों का बच्चों पर नकारात्मक असर पड़ता है तथा वे दबाव में रहते है।
शिक्षा एवं शिक्षकों से दबावः-
आज के बच्चे केरियर औरिटेण्ड बन रहे है, शिक्षा एवं शिक्षक सभी को जैसी सामग्री प्रदान करते है एक जैसा होमवर्क देते है। लेकिन सभी बच्चों की क्षमता एक जैसी नहीं हो सकती है। मनो चिकित्सक नियति धवन के अनुसार शैक्षणिक दबाव छात्र के अच्छे प्रदर्शन के लिए बाधक है। कुछ छात्र शैक्षणिक तनाव का अच्छी तरह से सामना कर लेते है लेकिन कुछ ऐसा नहीं कर पाते जिसका असर उनके स्वभाव पर पड़ता है। वे माता-पिता के सामने उग्र होने लगते है। कई तो तनाव ग्रसित होकर पढ़ाई बीच में छोड़ देते है।
देखने में यह भी आता है कि आज अभिभावक एवं शिक्षक बहुत अधिक महत्वाकांशी हो गये है। स्कूल में अच्छे प्रदर्शन और पढ़ाई के तनाव के साथ-साथ घर में भी उन पर ऐसा ही दबाव रहता है।
भारी बस्ता भी तनाव का कारण बन गया है एसोचैम के एक सर्वे में यह भी सामने आया है कि पांच से बारह वर्ष उम्र वर्ग के बच्चों में भारी स्कूल बेग की वजह से पीठ दर्द और तनाव का खतरा ज्यादा रहता है।
परीक्षा से सम्बन्धित दबावः-
अभिभावक या माता-पिता बच्चों के रिजल्ट को देखते है उनके द्वारा अर्जित मार्क्स पर ध्यान रखते है दूसरे से तुलना करते हैै कि दूसरे बच्चे 99.9 प्रतिशत अंक लाते है तो मेरे बच्चे क्यों नहीं? दूसरे बच्चे कॉम्पिटशन आइ.ए.एस., डॉक्टर, इंजिनियर बनते है तो मेरे बच्चे क्यों नहीं? दूसरे बच्चों की क्षमता की तुलना अपने बच्चों से करते है। वो ये नहीं देखते कि लक्ष्य केवल आई.ए.एस., डॉक्टर, इंजिनियर ही नहीं है। कलाकार, संगीतकार, खिलाड़ी, व्यापारी और कानूनविद भी लक्ष्य हो सकते है। लेकिन इन लक्ष्यों की तरफ वे नहीं देखते। हर छात्र की पसंद अलग-अलग होती है यदि कलाकार बनने की क्षमता रखने वाले को डॉक्टर बना देंगे तो वह डॉक्टरी नहीं कर पायेगा। अभिभावक इन बातों को ध्यान में रखे कि हर बच्चे में कोई न कोई टेलेन्ट होता है वे बच्चे की पसंद के टेलेन्ट को उजागर करें। उसमें उसे आगे बढ़ने में मदद करे न कि दूसरों से तुलना करके उसके सपनों को चूर-चूर करने में। यदि ऐसी विचारधारा होगी तो बच्चों को परीक्षा सम्बन्धी तनाव नहीं रहेगा। क्योंकि उसका लक्ष्य अधिक अंक प्राप्ति नहीं होकर अपने स्किल्ड को निखारना होगा जिससे वह अपने सपनों को साकार कर सकें।
उपरोक्त सभी बातें यह स्पष्ट करती है कि बच्चों के मानसिक विकास में कई सारी बाधाएं उत्पन्न हो रही है इनके निवारण के लिए उपरोक्त समस्याओं में समाधान तो है ही लेकिन हम “किड्स स्टॉप प्रेस“ की वेबसाइट पर जाते है तो स्पष्ट होता है यह चिल्ड्रंस लाइफ स्टाइल की वेबसाइट है इसमें पेरेन्टस को बच्चों की लाइफ स्टाइल से जुड़ी हर चीज की जानकारी मिलती है। उसका बेहतर विकास कैसे हो पेरेन्टस जान सकते हैं छोटे बच्चों के पेरेन्टस के लिए यह अच्छा प्लेटफार्म है जिसके द्वारा कई समस्याओं का समाधान मिल सकता है।
उपरोक्त सभी तथ्य हमें चिन्तन करने के लिए बाध्य करते है हम बच्चों के मानसिक दबाव के लिए कितने जिम्मेदार है।
-पदमचन्द गांधी, भोपाल
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