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भूली बिसरी यादें (कविता) -प्रिया राय


कभी ऊंचे छत पर बैठकर
नजारा देखा करती थी,
आज
ऊँचाइयों को देखकर
छत को देखा करती हूं

आपने
सीढ़ी बनकर उठना सिखाया है।
मां बाप ने तो
जीवन की राह दिखाएं हैं ।
फिर आपने
उन पथ पर हमें चलना सिखाया है,
मैं धन्य हूं देवी, मैं धन्य हूं ।

उस दिन और उस क्षण का
जिस दिन हाथ पकड़ कर
भवनस् त्रिपुरा विद्या मंदिर का 
गीत सिखाया था।

कामयाबी की पहली बुलंद पर
आपने ही मुझे चढ़ाया था।
उस दिन
पूरे होश हवास से
मैंने खुद को पहचाना था,
जिस दिन आपने
मुझे बेस्ट टीचर की उपाधी दिलवायी थी।

तभी संकल्प लिया था
अपना और आपके नाम को चमकाऊंगी,
फिर कुछ साल के बाद
जब इस मुकाम में आई कि
आपने मुझे बेस्ट 
क्लास टीचर का अवार्ड दिया था।
धन्य हूं मैं देवी मैं धन्य हूं।

फिर आपने मुझे
आईपीएल में बैठने का 
सुनहरा मौका दिया था,
आपके आशीर्वाद से ही
मैंने तीसरी सीढ़ी चढ़कर
अवार्ड लाकर आपको दिया था।

कैसे भूलु वह कश्ती
जिसके खैवया थी आप,
कैसे भूलु वह मिट्टी
जिस से बनी प्रतिमा हो आप।
अपनी प्रतिभा से आपने
मुझ पर जोत जलाया है,
और दुनिया में जीना सिखाया है।

प्रतिज्ञा है मेरी
जहां भी मैं जाऊंगी,
आप ही कि गीत गाउंगी ।
धन्य हो देवी जिसने तुझे बनाया है,
जाने यह मिट्टी वह कहां से लाया है।
कई साल गुजरे एक संग
वह दिन फिर कहां से लाऊंगी,

पर हां जहां भी रहूंगी मैं 
आपको बहुत याद आऊंगी।
तेरी मूर्ति को मैं अपने आगे रखकर
शीश झुकाऊगी

-प्रिया राय,त्रिपुरा

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