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भारत माता कौन (कविता) - प्रदीप नवीन


कोई मनौती मांग रहा
देश रहे खुशहाल,
कोई पनौती चाह रहा
सब कुछ हो बेहाल ।

एक विद्वान ये पूछ रहा
भारत माता कौन ?
कैसे क्या बतलाएं आखिर
करके टेलीफोन ?
उलझे सबके विचार इस पर
सुलझे कैसे जाल ?
कोई...... देश रहे.......


जेबकतरा उसको कहते
जेबें करता साफ ,
जो कहते उनके ही ऊँचे
भ्रष्टाचारी ग्राफ ।
देसी बिदेसी बैंकों तक में
भरा हुआ है माल ।
कोई...... देश रहे......

जो चाहता है भला सभी का
फिर भी है पापी ?
उसकी ऊँचाई बढकर के
किसने है नापी ?
अपने अपने साजों पर सब
उल्टी ठोकें ताल ।
कोई....... देश रहे.......

एक साथ विश्वास सभी का
समुचित सबका विकास,
बतलाओ अब इसमें आखिर
किसको क्या कुछ त्रास ?
पूरे विश्व में चर्चा जिसकी
ऊँचा हुआ है भाल ।
कोई...... देश रहे.......

कुछ भी हो अच्छा लगता है
सबके हाथ में फूल ,
वरना उडती सभी जगह है
झूठी , स्वार्थी धूल ।
सोचे जनता कैसा होगा
आने वाला काल ।
कोई....... रहे देश......

जैसे तैसे इन्हें जीतना
कैसे सभी चुनाव ,
धूप खोजती फिरे भले ही
ठंडी ठंडी छाँव ।
भले झुके सारे वृक्षों की
हरी भरी सी डाल ।
कोई...... रहे देश......

-प्रदीप नवीन, इन्दौर

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