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हत्यारा (लघुकथा) -कमलेश कंवल


"सुनो" मैंने आवाज़ सुनकर ,पलटकर देखा था,प्रीत थी। केबिन के दरवाज़े को आधा खोलकर बाहर झांकती हुई कह रही थी "मैडम आपसे बात करना चाहती है।" मन आशंकित हो गया था, डर के प्रेत मन मे मंडराने लगे थे।

"आता हूँ" कहकर मै केबिन में चला गया।  सामने डॉक्टर बैठी हुई थी, मुझे सामने रखी हुई कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए वो प्रीत की तरफ देखने लगी थी। जिसके चेहरे पर चिंता ने अपने पंख फैला दिए थे। "ऐसा करते है , इंतजार करते है" डॉक्टर कह रही थी । "फिर सोनोग्राफी करवा लेंगे... पता चल जायेगा कि क्या है ? बॉय हुआ तो ठीक, नहीं तो सफाई कर दूंगी..... फिर प्रीत भी तो यही चाहती है ....है ना प्रीत ? डॉक्टर ने प्रीत की ओर देखते हुए कहा, डॉक्टर की आवाज़ मेरी कनपटी पर हथोड़े की तरह बज रही थी।

मन कसैला हो चला था। "अभी कर दीजिये ,मैडम" अनायास मेरे मुंह से निकल गया था "जानने के बाद कि लड़की है,  यह करना मेरे लिए बहुत कठिन हो जायेगा।" बात ख़त्म करते-करते मै उठकर खड़ा हो गया था। डॉक्टर कह रही थी "काश !आपकी तरह सभी की सोच होती" मै उनको अनसुना करते हुए बिना प्रीत की ओर देखे केबिन से बाहर आ गया था। जानता था कि प्रीत क्या चाहती है ,फिर भी और भला क्या कर सकता था ...मै हत्यारा।

-कमलेश कँवल ,उज्जैन

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