Subscribe Us

घमंड (लघुकथा) -डाॅ वाणी बरठाकुर 'विभा'


निकुंज वन में रंगीला नाम का एक बहुत ही सुंदर मोर रहता था । उसके पंख के सुन्दरता देखकर वन के सभी दंग रह जाते । जो कोई भी देखता है, प्रसंशा किए बिना नही रह पाता है । इसलिए वो बहुत घमंडी थे । उसका एक मोर मित्र था पखरु, वो भी सुन्दर था, मगर उसमें जड़ा सा भी घमंड नही था ।

पखरु रंगीला का बहुत ख्याल रखता था, लेकिन रंगीला, आपने आप में खोया रहता था । रंगीला जब तब उछल कूद करता रहता था और बिन बरसात के ही पंख फैलाकर नृत्य करता रहता था । वो पंख फैलाकर नृत्य करके खुद को प्रदर्शित करता रहता था । 

पखरु कहता था "रंगीला,तू सच में बहुत सुंदर है, लेकिन तू जब तब नृत्य मत किया कर, तुझ पर बहुतों के नजर । इस तरह के ज्यादा उछल कूद से कभी विपदा में फंस जाओगे ।" ऐसे वो उसे अक्सर समझाते रहते थे , लेकिन उस पर घमंड के पर्दे चीरकर बात को दिमाग के अंदर घुसते नही थे । उल्टा उसे डांट कर कहता था , "मैं सुन्दर हूँ, इसलिए मुझे सभी देखते है, इस बात पर तुझे शायद बहुत जलन होते है ।" ऐसी बातो से पखरु चिंतित और दुखी हो जाते थे , फिर भी वो रंगीला को बुरा नही मानता था । उसे विश्वास था कि एक दिन रंगीला के दिमाग से घमंड उतर जाएगा ।

अब शीत ऋतु जाकर धरा पर बसंत ऋतु आ गया है । मौसम बहुत सुहावना हो गया है । निकुंज वन में भी पेड़ पौधों पर मंजरी मुस्कराने लगे हैं । डाली डाली पर तरह-तरह के कुसुम खीलने लगे हैं । वन में मलय परिमल लिए बहने लगे हैं । गुंजन पक्षी फूल फूल पर से मधु पान करने लगे । लताएं फूलों की गुच्छे लिए डोल रहे है । आनंद में तरह-तरह के पंछी तराने गा रहे हैं । सभी पशु मस्त होकर घूम रहे है । धरा पर रिमझिम बूंदे गिरने लगे है । रंगीला बूंदे देखकर आत्म विभोर हो गया है । वो एक बार यहाँ और एक बार वहाँ कूदने लगा । तभी कोयल भी कुकुहाने लगे । वो भी भी खूद को प्रदर्शन करने लगा । 

दूर गांव से बासंती पर्व की देवी आरती के लिए बजाए गए ढोल की आवाज सुनाई दे रही है । वो पंख फैलाकर ताल से ताल मिलाकर झूम झूम नाचने लगे । तोता, हंस, कौवा सभी तालियाँ बजाने लगे । पखरु भी देख रहा था । अचानक से उसका नजर झारी के पीछे रंगीला को पकड़ने के लिए छिपा हुआ शेरनी दिखाई दिया । पखरु घबरा गया, क्योंकि रंगीला तो आपने आप में मग्न है, क्या किया जाए वो सोचने लगा । वो चिल्लाने लगा "रंगीला..... रंगीला.....पीछे.....शेर ।" लेकिन कोई असर नही हुआ । पखरु को पता है कि अगर रंगीला को नाचते समय चोंच से चोट किया जाए तो वो गुस्से में आकर उसे प्रहार करने के लिए पीछा करेगा । 

पखरु ने समय बरबाद किए बिना झट उड़कर गया और जोड़ से रंगीला पर वार किया और ऊपर डाली पर बैठ गया । रंगीला गुस्से में आकर पखरु का पीछा करता हुआ डाली पर बैठ गया और उसे डांटने लगा "मैं नाच रहा हूँ, तुझे बर्दाश्त नही हो रहा है न! जाओ, आज से तुझसे बात नही करूंगा ।" तभी पखरु ने इशारा करते हुए नीचे दिखाया । रंगीला को सब समझ मैं आ गया ,आँखों से आँसू बहने लगा और बोलने लगा " सच है, तू मेरा असली दोस्त है, मैं ही तुझे कभी नही समझा, आज से तेरा हर बात मानूंगा । आज तू नही होता तो........।" पखरु को पकड़कर रोने लगा । "मत रोओ दोस्त, ऐसा कभी-कभी होता है, तुझे समझ में आया यही बड़ी बात है । उस दिन से रंगीला सुधर गया और पखरु के साथ सुख से रहने लगा ।

-डाॅ वाणी बरठाकुर 'विभा',शोणितपुर, असम

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ