रुको ज़िंदगी! यात्रा लंबी है रास्ते पर बिछे हैं भ्रम आशक्ति के फूल शूल की तरह पथ पर आ गए हैं पथभ्रष्ट करने कालनेमि
रुको ! देखो ! अपने आप को अपने स्वभाव को यात्रा के उद्देश्य को देखो ! मुस्कराते फसल को पेड़ों के झूमते पत्तों को झोपड़ी में सुलग रही आग को दौड़ने के साथ रुको तो कभी सोंचो तो कभी देखना चाहिए तुम्हें पहले अपने आपको अपने उद्देश्य को
चलना ,दौड़ना, भागना! किसने मना किया मेरे मित्र नही किसी ने नहीं ? कुछ बात है ज़िंदगी । आत्मविश्लेषण , प्रज्ञा संवाद की खूब बहाना पसीना खेतों में पशुपालन में , शारीरिक श्रम में खेलना जीवन में परिश्रम का खेल देखना नही होगा कोई भी ज़िंदगी में घालमेल।
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