मेरे पुष्य नक्षत्र (कविता) -अरविन्द कुमार पाठक 'निष्काम'
ओ
मेरे पुष्य नक्षत्र
आज एक सेर आटा
एक सेर चावल दाल
ख़रीदा है
फटी कमीज की रफ्फू
बिटिया के लिए फ्राक
माँ और घरवाली के लिए साड़ी
पिता जी को अंगरखा
बाबू के लिए चाइनीज कार
ख़रीदा है
क्योंकि
अक्षर ज्ञान के कारण
अखबार की खबर
पढ़ ली थी
देख लिया था न्यूज
टीवी पर कि
तुम आज आ रहे हो
तुम्हारे आने पर जो जैसा
करता है खरीदी
वह वर्षभर वैसा ही रहता है
अब हमने जो ख़रीदा है
उतना तो रहे गा न
ओ मेरे पुष्य नक्षत्र
-अरविन्द कुमार पाठक 'निष्काम', नागदा
1 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर ।
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