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चलता जा, बढ़ता जा (कविता) -ललित शर्मा


चलता जा बढ़ता जा 
बढ़ाता जा मन का बल 
मत तोड़ हिम्मत 
हो जा निडर 
बढ़ता जाएगा 
स्वतः आत्मबल 

कदमों को बढ़ाता 
मनशक्ति बढ़ाता 
बढ़ता आगे निकल 
मत थाम कदम 
हिम्मत से ले काम 
बढ़ाकर मन का बल 
खुशियों का मिलेगा 
स्वतः आत्मबल 

बढ़ाकर विवेकपूर्ण 
मन के नेक विचार 
अनुभव खुशियों में 
बढ़ा आत्मिक बल 
खिलता चला आएगा 
स्वतः आत्मबल 

खुशियों की लता सा 
फैल जाएगा संसार 
उच्च ख्यालों का 
बढ़ता जाएगा प्यार 
मन ही मन में भरेगा 
बंधायेगा अन्तर्मन 
करूणा प्रेम सम्बल 
झूठ कपट छलकपट 
त्यागकर पायेगा वही 
स्वतः आत्मबल 

फैलते रहे अन्तर्मन में 
सच्चाई ईमानदारी 
बढ़ते जाए उत्तम भाव रहे 
न मन कभी चंचल 
भूलकर जीवन के दुख 
मिलेगा चैन और बल 
मन ही मन भरता पायेगा 
दरदिन हरपल
स्वतः आत्मबल

-ललित शर्मा,डिब्रुगढ़,असम

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