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अखबार बांटने वाला (कविता) -संजय वर्मा 'दृष्टि'


शीत लहर की सुबह
जब सब सो रहे
तब अखबार बाटता
सायकल से लड़का
बंडल को रबर बांध कर
ऊंची गैलरी में फैकता
निशाने बाज की तरह
किसी के दरवाजे
रोशनदान से सरका देता
जब दुनिया सो रही होती।
कहीं जलते पुराने अखबार
टायर के अलाव में सेक लेता
अपने हाथ पांव
उसे सेकने हेतु कोई बुलावा नहीं देता
उसका भी सड़को पर हक है।
कोई खुली दुकान पर चाय की खुश्बू
उसे तंग करती।
मजबूरी जेब में पैसे कहाँ
पैडल की गर्मी का जनरेटर है
उसके पास
उसे फिक्र है दुनिया की खबर
सोये हुए लोगों को सबसे पहले देने की
छोटे गांव से लेकर नगर के घरों में
पहुंचाने की
किसी दिन पेपर आने में देर क्या होती
सोया इंसान उठने पर
सारा शहर उठा लेता अपने सर
अखबार पर इतना विश्वास
जैसे पत्थर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद
पत्थर में आ जाती जान
और बन जाता भगवान
खबरों की जीवंतता
और अखबार में समाचार की
होती रोज प्राण प्रतिष्ठा
इसलिए तो अखबार और
अखबार इतनी कड़क ठंड में
लगते प्रिय
एक दिन अख़बार में खबर
अखबार बांटने वाले को
शीतलहर की अलसुबह में
किसी पुण्य आत्मा ने
चाय का पूछा
और दिया अलाव तापने का
निमंत्रण।

-संजय वर्मा 'दृष्टि', मनावर

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