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दीपावलियाँ हैं सजी (दोहें) -डॉ मंजु गुप्ता



दीपावलियाँ हैं सजी , घोर अमा की रात ।
उतरे नभ से जिस तरह, तारों की बारात ।।

इक दूजे को दे रहे, बधाइयां , आशीष ।
मंगलमय हो पर्व यह बरसे लक्ष्मी ईश ! ।।

अंधकार दहशत भरा, छाया आधी रात ।
देशभक्ति के दीप ने, वैरी को दी मात ।।

दीपक से दीपक जलें, भू पे करें उजास ।
नवल उजाला जग भरे, लाये सुख की आस ।।

चाहत के ले रंग नव , आया है त्यौहार ।
जन - जन में खुशियाँ बसी , बाँटे मिठास प्यार।।

मन ड्योढ़ी दीपक जले, आए साजन याद ।
कैसे हो दीपावली, किससे हो फरियाद ।।

ले आई दीपावली, खुशियों की बरसात ।
झूम रही खुशियों भरी, आज अँधेरी रात ।।

समता का दीपक जला, भेद-भाव दें मेट ।
भारत माता को यही, दीवाली की भेंट ।।

सत्य, न्याय, श्रम हो जहाँ , लक्ष्मी करें निवास ।
पर्व कहे जग को सदा, उद्यम में श्री वास ।।

दिल का दीपक जब जला, महके मन मकरंद ।
रस्म-रवायत से सजे, दीवाली के छंद।।

चाँद न आया आज क्यों, दीवाली की रात ।
दीयों से डर के छिपा, चाँदनिया के साथ ।।

इस दीवाली देश को , जाएँ मिल प्रभु राम ।
काले धन अरु घूस के , घोटाले लें थाम ।।

-डॉ मंजु गुप्ता, नवी मुम्बई

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