Subscribe Us

जीवन क्या है? (कविता) -ज्योति पैठनकर


जीवन क्या हैं?
लड़ो तो हर पल एक
नया संग्राम
जियो तो हर पल एक
नया आयाम
समझो तो एक विज्ञान
जोड़ो तो गणितीय विधान 
कर्मयोगी के लिए
एक कवि के लिए गीत
सुकुमारी के लिए प्रीत
जीवन साँसो का तंतु एक
अस्थि मज्जा समयोजन एक
आत्मा हैं विलग,
हैं एक अलौकिक, 
पार लौकिक सर्वशक्तिमान सब
हैं उसकी इच्छा का खेल,

जीवन क्या हैं?
इन सबसे परे हैं
कोई जो जगत का रचियता
जिसने रच डाली सृष्टी
रच डाले सारे विधान
वही हैं प्रधान
सभी को जाना
वही जाना
आज नहीं तो कल जाना
तो क्यूँ ना तब तक
उसके खेल में ही मन को रमा लें
तो क्यूँ ना 
उसके निमित्त कार्यों को पूरा ही कर लें
तो क्यूँ ना तब तक जी ही लें
अपने बच्चों को खुश देख 
मैं खुश हो लेती
वैसे ही परमपिता भी 
मुझे खुश देख खुश हो लें
आओ मिलकर आशा के दीप
जला लें
खुशियों के आंचल भर लें

-ज्योति पैठनकर, इंदौर

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ