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शाकाहारी जीवनशैली के साथ गाय और अन्य प्राणियों के संरक्षण की जरुरत है -डॉ दिलीप धींग


दिल्ली। गुरु सुदर्शन शिक्षा समिति, दिल्ली की सहभागिता में श्रुत रत्नाकर, अहमदाबाद के तत्वावधान में 28-30 अक्टूबर, 2023 को दिल्ली में त्रिदिवसीय द्वितीय राष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी हुई। संघशास्ता सुदर्शनलालजी म.सा. की जन्म शताब्दी की संपूर्ति पर आयोजित यह संगोष्ठी बहुश्रुत जयमुनिजी एवं आदीशमुनिजी की सन्निधि में हुई। उपासकदशांग सूत्र के परिप्रेक्ष्य में जैन जीवनशैली विषय पर इस संगोष्ठी के प्रबंधन में श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन संघ, रोहिणी का सहकार रहा। बहुश्रुत मुनिश्री के मंगलाचरण से उद्घाटित संगोष्ठी में श्रुत रत्नाकर के संस्थापक प्रो. जितेन्द्र बी. शाह ने स्वागत भाषण दिया।

संगोष्ठी में शसुन जैन कॉलेज, चेन्नई में जैनविद्या विभाग के शोध-प्रमुख साहित्यकार डॉ. दिलीप धींग ने उपासकदशा सूत्र के संदर्भ से कहा कि भगवान महावीर के युग से लेकर वर्तमान तक जैन समाज गोरक्षा और जीवदया में अग्रणी हैं। डॉ. धींग ने कहा कि गाय को न तो पूजा की जरूरत है, न ही गाय के नाम पर राजनीति करने की जरूरत है और न ही गौशाला के नाम पर धंधा करने की जरूरत है। जरूरत है शाकाहारी जीवनशैली के साथ गाय और अन्य प्राणियों के संरक्षण की। 

अंतरराष्ट्रीय संस्कृत अध्ययन एसोसिएशन (पेरिस) की अध्यक्ष प्रो. दीप्ति त्रिपाठी ने डॉ. धींग का सम्मान किया।प्राकृत भाषा विकास सत्र में अंतरराष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन शोध केन्द्र के पूर्व निदेशक डॉ. दिलीप धींग ने प्राकृत को शास्त्रीय (क्लासिकल) भाषा का दर्जा देने का सुझाव दिया। इस पर भोगीलाल लहरचंद प्राच्यविद्या संस्थान, दिल्ली के निदेशक प्रो. विजयकुमार जैन ने बताया कि यह विचाराधीन है। विश्व भारती, कोलकाता में प्राकृत के प्रोफेसर डॉ. जगतराम भट्टाचार्य ने वार्तालाप में डॉ. धींग के निबंध व कथन ‘‘हिंदी की बिंदी प्राकृत की देन’’ की अनुमोदना की और कहा कि अब वे स्वयं प्राकृत अध्यापन में ससंदर्भ इसका उपयोग करते हैं।

प्रो. दीनानाथ शर्मा ने कहा कि सभी प्रकार की प्राकृत भाषाओं में अर्धमागधी प्राकृत सबसे प्राचीन है। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के निदेशक (केन्द्रीय योजनाएं) आर.जी. मुरलीकृष्ण ने कहा कि यदि जैन धर्म ने प्राकृत को नहीं बचाया होता तो यह ऐतिहासिक भाषा लुप्त हो जाती। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा यदि सुरक्षित है तो जैन धर्म के साथ ही सुरक्षित है। 

जिनवाणी के संपादक प्रो. धर्मचंद जैन ने कहा कि नियतिवादियों को उपासकदशांग सूत्र पढ़ना चाहिये। संगोष्ठी में देशभर के सभी संप्रदायों के विद्वानों ने भाग लिया। गुरु सुदर्शन जन्म शताब्दी समिति के संयोजक रविन्द्र जैन ने धन्यवाद दिया। व्योम शाह ने संचालन किया।

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